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वे आयुष्य-काल पूर्ण होने पर वैजयन्त विमान में महाशक्तिधर देवरूप में उत्पन्न हुए।
(श्लोक ३-१३) जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र के दक्षिणार्ध में वैभव के लिए प्रसिद्ध काकन्दी नामक एक नगर था। इसके प्रतिगृह में प्रलम्बित मुक्तामाला पतिव्रताओं के लिए मदन को दमनकारी अक्षमाला के रूप में सुशोभित थीं। मन्दिर से निकलता चतुर्विध संगीत विद्याधरियों को स्तब्ध करने के लिए मन्त्र रूप था। यहाँ के सरोवर निर्मलजल
और श्वेतकमल से शरदकालीन मेघमुक्त और नक्षत्र खचित आकाश के प्रतिबिम्ब की रचना करते । यहाँ के भिक्षुक भी गुरु की तरह पाद्य और अर्घ से सम्मान सहित पूजे जाते। (श्लोक १४-१८)
सौन्दर्य में पृथ्वी के कण्ठहार की तरह या ग्रेवेयक विमान के देव की तरह सुग्रीव नामक एक राजा यहाँ राज्य करते थे । मन्त्रपूत तलवार की तरह उनका आदेश क्या नगर क्या अरण्य क्या पर्वत क्या समुद्र सर्वत्र मान्य था । न्यायशासन की धारा और यश रूप तरंग पर्वत से समद्र की ओर प्रवाहित होने वाली नदी की तरह उनसे उत्थित होकर प्रवाहित होती थी। राजाओं के मुकुटमणि स्वरूप उन राजा का यश रूप महासमुद्र विभिन्न राजाओं की यशरूपी स्रोतस्विनियों को ग्रस लेती थी।
(श्लोक १९-२२) उनकी पत्नी का नाम था रामा। वे दोष रहित, निर्मल गुण सम्पन्न और सुन्दरियों की मुकुटमणि तुल्या थीं। प्रकृतिदत्त सौन्दर्य से विभूषित, नयनों को आह्लादकारी वे आकाश की चन्द्रकला की तरह ही पृथ्वी पर अनन्य थीं। कलकण्ठी श्वेतवस्त्रा (मानो श्वेत पंखयुक्त) वे राजहंसिनी की तरह सर्वदा पति के मानस में निवास करती थीं। उनके अतुलनीय सौन्दर्य से अभिभूत होकर रति भी आनन्द और प्रीतिवान नहीं रहती अर्थात् उनके प्रति ईर्ष्यान्विता थी। राजा सुग्रीव के साथ मानो वे एक दूसरे के लिए ही निर्मित हों इस प्रकार चन्द्र और रोहिणी जैसे क्रीड़ा कर समय व्यतीत करते हैं उसी प्रकार समय व्यतीत करते ।
(श्लोक २३-२७) महापद्म के जीव ने वैजयन्त विमान की ३३ सागरोपम की आयु पूर्ण की। फाल्गुन कृष्णा नवमी को चन्द्र जब मूला नक्षत्र में था तब वहां से च्युत होकर रानी रामा के गर्भ में प्रवेश किया। तब रानी ने तीर्थङ्कर के जन्म-सूचक हस्ती आदि चौदह महास्वप्न