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७४] पाँच सौ मुनियों सहित प्रभु ने सिद्ध गति प्राप्त की।
___(श्लोक ११८-१२२) सुपार्श्व प्रभु ने पाँच लाख पूर्व तक युवराज रूप में, चौदह लाख पूर्व और बीस पूर्वाङ्ग तक राजा रूप में, बीस पूर्वाङ्ग कम एक लाख पूर्व तक व्रती रूप में व्यतीत किए। आपकी सम्पूर्ण आयु बीस लाख पूर्व की थी। सुपार्श्व स्वामी का निर्वाण पद्म-प्रभ स्वामी के निर्वाण के नौ हजार कोड़ सागरोपम के पश्चात् हुआ।
(श्लोक १२३-१२५) अच्युतेन्द्रादि ने प्रभु और मुनिवरों की दाह-क्रिया सम्पन्न कर निर्वाणकल्याणक उत्सव मनाया।
(श्लोक १२६) पचम सर्ग समाप्त
षष्ठ सर्ग ॐ । भगवान् चन्द्रप्रभ की चन्द्रिका-सी वाणी जयवंत हो जो कि तमः का नाश कर आनन्द देती है। मैं भगवान चन्द्रप्रभ स्वामी का जीवन जो सूर्यातप की तरह भव्य जनों के अज्ञान अन्धकार को गलाने में समर्थ है उसका वर्णन करता हं। (श्लोक १-२)
धातकी खण्ड द्वीप के पूर्व विदेह के अलंकार-तुल्य मानावती विजय में रत्न-संचय नामक एक नगरी थी। उस नगरी के राजा का नाम था पद्म। वे पद्मा के पद्म-निकेतन तुल्य और सामर्थ्य में भोगवती के नागराज की तरह अत्यन्त शक्तिशाली थे । सदा दिव्य गीत परिवेशनकारी गन्धर्वो द्वारा सेवित वे अप्सराओं-सी गणिकाओं द्वारा परिवृत्त रहते थे। दिव्य गन्ध वस्त्र और अलंकारादि द्वारा उनका सुन्दर शरीर चचित और शोभित होता था। उनका आदेश राजाओं द्वारा दिन-रात पाला जाता था व कोशागार कभी शून्य नहीं होता । उनकी प्रजा सर्वतः समृद्धिशाली थी। उसे किसी प्रकार का अणु-मात्र भी दुःख नहीं था।
(श्लोक ३-७) उनके प्रमुख वे राजा तत्त्व ज्ञात कर संसार से विरक्त हो
(श्लोक ८ इन्द्र जिस प्रकार पर्वत विनष्ट करने को वज्र ग्रहण करते हैं उसी प्रकार उन्होंने संसार विनष्ट करने को गुरु युगन्धर की दीक्षा
गए।