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गई।
करूंगा।
(श्लोक ३४-३१) ___ इस प्रकार रानी को सान्त्वना देकर, पवित्र होकर पवित्र वस्त्र धारण कर वे राज-प्रासाद से कुलदेवी के मन्दिर में गए । वहाँ जाकर यह संकल्प कर लिया कि जब तक मुझे पूत्र-प्राप्ति का वर नहीं मिलेगा, निराहार रहकर तब तक देवी की उपासना करता हुआ यहीं बैठा रहूंगा। छठे दिन देवी ने प्रत्यक्ष होकर राजा से कहा-'वर माँगो।' राजा विजयसेन ने देवी को प्रणाम कर कहा
—'माँ, मुझे ऐसा पूत्र दो जो मनुष्यों में श्रेष्ठ हो।' देवी ने प्रत्युत्तर दिया- 'एक प्रधान देव स्वर्ग से च्युत हो रहा है वही तुम्हारा पुत्र होगा।' यह वर देकर देवी अदृश्य हो गई। राजा ने देवी प्रदत्त इस मंगलमय बात को रानी से कहा। वज्रनाद से बलाका जिस प्रकार हर्षित होती है यह सुनकर रानो भी उसी प्रकार हर्षित हो
(श्लोक ३८-४३) स्वर्ग से एक महाशक्तिशाली देव च्युत होकर शुचि-स्नाता रानी के गर्भ में प्रविष्ट हुआ। रानी ने सुप्त अवस्था में एक केशरी सिंह को अपने मुख में प्रवेश करते देखा। डरकर रानी शय्या पर उठ बैठी और राजा को स्वप्न की बात बताई। राजा बोले'कुलदेवी प्रदत्त वर रूपी वृक्ष के फलस्वरूप इस स्वप्न से तुम्हारे सिंह-सा विक्रमशाली पुत्र होने का संकेत मिलता है।' स्वप्न की यह व्याख्या सुनकर रानी हर्षित हो गई और रात्रि का अवशिष्ट भाग पवित्र धर्मालोचना में व्यतीत किया। गंगाजल से जिस प्रकार स्वर्णकमल वद्धित होता है वैसे ही रानी के गर्भ का भ्र ण दिनप्रतिदिन बढ़ने लगा।
__ (श्लोक ४४-४९) ___ एक दिन रानी ने अपने मन में उत्पन्न दोहद के विषय में राजा को बताया। बोली-'मैं समस्त प्राणियों को अभय देना चाहती हूं। ग्राम-नगर में मैं हिंसा-निषिद्ध की घोषणा करवाना चाहती हूं।' सुनकर राजा बोले-'देवी, कुलदेवी के वर और स्वप्न से उद्भुत तुम्हारा दोहद गर्भ की शक्ति के कारण कल्याणकारी है। गर्भ के जीव की महानुभावता के कारण ही ऐसा दोहद उत्पन्न हआ है। कुलदेवी के आदेश से की हुई कुल व्यवस्था कार्यकर होती है।' ऐसा कहकर राजा ने सभा को अभय दिया और नगर में ढोल पिटवाकर हिंसा-निषिद्ध की घोषणा करवा दी। दिव्य वाद्यों के