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पति को माता के निकट यथाविधि सुला दिया। तदुपरान्त शक प्रभु के गृह से एवं अन्यान्य इन्द्र मेरुपर्वत से स्व-स्व स्थान को लौट गए।
(श्लोक ८३-८५) दूसरे दिन सुबह राजा ने पुत्र का जन्मोत्सव किया जिससे समस्त प्रजा आनन्दित हो उठी। जिस दिन से वे गर्भ में आए थे उस दिन से परिवार, नगर और राज्य आनन्दित हो रहा था अतः आपके माता-पिता ने आपका नाम रखा अभिनन्दन । स्व-अंगुष्ठ से इन्द्र प्रदत्त अमृत-पान कर और स्वर्ग की अप्सराओं द्वारा पालित होकर वे क्रमशः बड़े होने लगे। प्रभु ने अपने समवयस्क देव और असुर बालकों के साथ नाना प्रकार की क्रीड़ा करते हुए बाल्यकाल को व्यतीत किया।
(श्लोक-८६-८९) बसन्तकाल में जिस प्रकार उद्यान वृक्षों से सुशोभित होता है उसी प्रकार अभिनन्दन स्वामी यौवन प्राप्त कर शोभान्वित होने लगे। उनकी देह ३५० धनुष दीर्घ थी और भुजाएँ आजानुलम्बित थीं। इससे वे श्रीदेवी के झूला सहित उन्नत वृक्ष से लगते थे । उनके कपोल सुन्दर थे। ललाट अर्द्ध चन्द्र-सा और मुख पूर्णचन्द्र की शोभा को अपहरण करने वाला था। उनका वक्षदेश सुवर्ण-शिला-सा था। स्कन्ध थे उन्नत, कटि क्षीग, पैर हरिण-से एवं पदतल कूर्माकृति थे।
(श्लोक ९०-९३) यद्यपि उन्हें संसार से वैराग्य था फिर भी भोगकर्म अभी भी अवशेष हैं ऐसा जानकर माता-पिता की इच्छा के अनुसार उन्होंने उच्च कूलजात राजकन्याओं के साथ विवाह किया। इन सून्दर तरुणियों के साथ वे इच्छा के मुताबिक प्रमोद उद्यान में, वापियों में, जलाशयों में, क्रीड़ा पर्वतों पर चन्द्र जैसे तारिकाओं सहित विहार करता है उसी प्रकार विहार करने लगे। जन्म से साढ़े बारह लाख पूर्व तक उन्होंने अहमिन्द्र की तरह आनन्द में निमज्जित होकर व्यतीत किया।
(श्लोक ९४.९६) राजा संवर अभिनन्दन स्वामी को सिंहासन पर बैठाकर स्वयं दीक्षित हो गए। उन्होंने एक गाँव की भाँति समस्त पृथ्वी का शासन किया। जो त्रिलोक की रक्षा करने में समर्थ हैं उनके लिए एक राज्य का शासन है ही क्या ? राजा रूप में अभिनन्दन स्वामी ने छत्तीस लाख पूर्व और आठ अंगों को अतिवाहित किया।
(श्लोक ९७-९९)