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देखने के लिए वह आकाश पथ पर उड़ रहा हो । वल्गा खींचकर कुमार उसे जितना ही रोकना चाहते वह उतनी ही द्रुतगति से इस प्रकार धावित था मानो उसने विपरीत शिक्षा प्राप्त की हो । मुहुर्त भर में वह धावमान अश्व अन्य राजाओं को पीछे छोड़कर ऐसे चला मानों वह कोई राक्षस हो । कुछ ही देर में राजपुत्र सहित वह अश्व चन्द्र जैसे नक्षत्रों से अदृष्ट हो जाता है उसी प्रकार राजाओं से अदृष्ट हो गया । ( श्लोक ८५ - ९५ ) बाढ़ जिस प्रकार नौका को बहा ले जाती है उसी प्रकार उस अश्व द्वारा अपहृत पुत्र को लौटा लाने के लिए राजा अश्वसेन ने स्वयं अश्ववाहिनी लेकर कुमार का अनुसरण किया । ' इधर से वह अश्व गया था', 'यह रहे उसके पैरों के चिह्न', 'यहां उसके का मुख फेन पड़ा है' - इस प्रकार जब वे बोल रहे थे उसी समय एक भीषण निर्मम और निष्ठुर मानो पृथ्वी की धौंकनी हो ऐसा असामयिक एक तूफान आया । इस तूफान ने प्रलयकालीन रात्रि की भांति मनुष्यों की आंखों को अन्ध कर दिया । कपड़े के आच्छादन से जैसे घर आच्छादित हो जाता है उसी प्रकार चारों ओर से उड़ती धूल द्वारा सभी सैनिक आवृत हो गए मानो वे मन्त्र द्वारा अभिमन्त्रित होकर एक कदम चलने में भी असमर्थ हो गए हों । घोड़े के पदचिह्न और फैन जो कुमार के पथ का निर्देश दे रहे थे उस तूफान की धूल से नष्ट हो गए । निम्न भूमि या उच्च भूमि या सम भूमि यहां तक कि वृक्ष और पौधे भी दिखाई नहीं पड़ रहे थे । समस्त लोगों के मन में हुआ मानो वे पाताल में धँस रहे हैं । समुद्र याती वणिकों की नौकाओं में जल भर जाने से जिस प्रकार किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं उसी प्रकार सैनिक भी अनुसन्धान को व्यर्थ समझकर किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो पड़े ।
( श्लोक ९६-१०२ )
महेन्द्रसिंह अश्वसेन को प्रणाम कर बोला- 'महाराज, यह सब भाग्य का निर्बन्ध है नहीं तो क्यों कुमार यहां आता, क्यों विदेशागत अश्व को यहां लाया जाता अज्ञात चाल-चलन के अश्व पर कुमार चढ़ते भी क्यों और दुष्ट अश्व द्वारा वे क्यों अपहृत होते एवं क्यों आंखों की दृष्टि को आवृत कर देने वाला तूफान ही आता ? किन्तु मैं सीमान्त स्थित सामन्त की तरह भाग्य को पराभूत कर अपने मित्र को मानो वे मेरे प्रभु हैं उन्हें खोजकर ले आऊँगा ।