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कर अपने बाहबल के अहङ्कार से अहङ्कारी बना वह मृत्यु द्वारा आकृष्ट होकर शीघ्र ही सीमा पर जा पहुंचा। यम जैसे वासुदेव भी वहां सोम, सुप्रभ, सेनापति और सैनिकों से परिवृत होकर उपस्थित हुए ! उभय पक्षों के सैनिकों ने अस्त्रवाही ऊँटों के पास जाकर अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र ग्रहण किए और धनुष पर टङ्कार देने लगे। तदुपरान्त एक साथ अनेक अस्त्र आकाश में उत्क्षीप्त हुए और रक्तपान को उत्सुक राक्षस की तरह बहुतों का विनाश कर डाला।
(श्लोक १५५-१६३) उत्तम हस्ती महावत द्वारा चालित होकर कभी आगे बढ़ते हुए, कभी पीछे हटते हुए चारों दांतों से युद्ध करने लगे । एक ओर बर्शा दूसरी ओर तोमर लटकाकर हाथों में तलवार लिए अश्वारोहियों ने द्रुतगति से अश्व धावित किए। दो रथ सिन्धु नदी के दोनों तटों की तरह महानिर्घोष से पृथ्वी को बधिर करते हए परस्पर निकट आए । पैदल सेना के वीर सैनिक तलवार से तलवार, ढाल से ढाल पर आघात कर युद्ध करने लगे। मुहूर्त भर में वासुदेव की सेना प्रलयकालीन वायु से जैसे वृक्ष भग्न हो जाते हैं वैसे ही भग्न हो गई। तब वासुदेव बलभद्र सहित आगे आए और शत्रु के लिए अशुभद्योतक अपना पाञ्चजन्य शङ्ख बजाया। इसके शब्द को सुनकर मधु के कई सैनिक कांप उठे, कई स्तम्भित हो गए, कई मूच्छित होकर धरती पर गिर पड़े। (श्लोक १६४-१७०)
___ जब मधु ने अपने सैन्यदल को निष्प्रभ होते देखा तो उसने धनुष की टङ्कार करते हुए पुरुषोत्तम पर सीधा आक्रमण किया। वासुदेव ने भी अपने धनुष पर टङ्कार दी। उस शब्द की प्रतिध्वनि ने स्वर्ग और मृत्यु को शब्दित कर डाला । सपेरा जैसे विवर से सर्प बाहर करता है उसी प्रकार वे तूणीर से तीक्ष्ण बाण बाहर करने लगे और मारने के लिए एक दूसरे पर छोड़ने लगे। विनाश दक्ष दोनों अस्त्रों द्वारा मानो विजय-लक्ष्मी को ही विनष्ट कर रहे हों इस प्रकार उन्होंने परस्पर के अस्त्र को नष्ट कर दिया। रस्सी काटने की तरह वे दोनों दूसरे के अस्त्रों को मध्य पथ में ही काटने लगे। समान शक्तिशाली योद्धाओं के युद्ध ऐसे ही होते हैं। दोनों को प्रायः समान-सा देखकर परिवर्तन को उत्सुक मधु ने चक्र को स्मरण किया। चक्र भी उसी मुहूर्त में उसके हाथ में आ गया । यद्यपि मधु