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दोनों पक्षों के रणवाद्य बजने लगे मानो वे देवों को आह्वान करने के लिए बज रहे थे । कारण, युद्ध के विचारक भी तो चाहिए। त्रिपृष्ठ और अश्वग्रीव के सैन्यदल ने देव और असुर सैन्य की तरह युद्ध के लिए उत्सुक होकर परस्पर आक्रमण किया योद्धाओं की चीत्कार, अश्व और पदातिकों के पैरों से उड़ती धूल से आकाश परिपूर्ण हो गया । रथों की पताकाओं में अकित सिंह, शरभ, व्याघ्र, हस्ती और कपि लंछन से आकाश ने अरण्य की तरह भयंकर रूप धारण कर लिया। नारद के कूटम्ब की तरह कलह का आनन्द लेने के लिए भाट और चारण दल सैन्य का उत्साहवर्द्धन करने वहां आकर उपस्थित हो गए। तदुपरान्त दोनों सेनाओं के अग्रगामी दल द्वारा युद्ध प्रारम्भ हो गया। इतनी वाण वृष्टि हुई कि लगा आकाश मानो पक्षियों से आवृत हो गया है। परस्पर अस्त्रों के आघात से अग्नि स्फुलिंग निकलने लगे। लगा अरण्य में अग्रशाखाओं के परस्पर घर्षण से दावानल प्रज्ज्वलित हो गया है। अग्रभाग स्थित अमित बलशाली सैनिकों के अस्त्रों की टकराहट से उत्पन्न झनझनाहट को देखकर लगा मानो समुद्र के जीव-जन्तु कलह में प्रवृत्त हो गए हैं। देखते-देखते समुद्र तरंग जिस प्रकार नदी के प्रवाह को पीछे ठेल देती है उसी प्रकार त्रिपृष्ठ कुमार की सेना के अग्रभाग ने अश्वग्रीव की सेना के अग्रभाग को पीछे हटने को वाध्य कर दिया। अँगुली कूचल जाने की तरह स्व-सेना के अग्रभाग को विनष्ट होते देखकर विद्याधर सैन्य कुपित हो उठी और भयंकर रूप धारण कर युद्ध की उन्मादना में टूट पड़ी मानो यम द्वारा आदेश पाकर दानववाहिनी बाहर आ गई हो। किसी ने भूत-सा दीर्घ दन्त विशिष्ट, विशाल वक्ष, कृष्णवर्ण और भयंकर रूप धारण कर लिया। ऐसा लगा मानो अंजन पर्वत की वह चूड़ा हो । किसी ने केशरी रूप धारण कर लिया मानो हल रूपी दीर्घ पूछ से वह पृथ्वी को विदीर्ण कर देगा और नाखूनों से चीर डालेगा। किसी ने पर्वताकार शरभ का रूप धारण कर लिया। हाथी जैसे सहज ही घास के पुलिंदे को सूड़ से छितरा डालता है उसी प्रकार वे सहज ही हस्ती को उठाकर फेंक सकते थे। किसी ने ववालक (हस्ती और सिंह का मिश्रित रूप) का रूप धारण कर लिया जो कि पूछ से पृथ्वी को विदीर्ण करने में और दाँतों से वृक्ष को विदारित करने में समर्थ थे। किसी