________________
१२२] गई। आक्रमण के समय चण्डवेग के अनुचर डरकर भाग गए थे। उन्होंने ही त्रिपृष्ठ सम्बन्धी सारी कथा राजा को बता दी थी। उन्नत मस्तक, रक्त चक्षु राजा को वैवस्वत की तरह पृथ्वी को ग्रास करने को उद्यत देख वह समझ गया कि मुझ पर जो आक्रमण हुआ वह बात राजा तक पहुंच गई है। कारण, अनुचर लक्षणविद् होते हैं। राजा द्वारा पूछने पर उसने सारी बातें कह सुनाई। कारण, प्रतापी प्रभु से झूठ नहीं कहा जा सकता; किन्तु अपनी प्रतिज्ञा को स्मरण कर वह बोला-'महाराज, राजा प्रजापति मेरी तरह ही आपके अनुगत हैं। राजकुमारों ने जो कुछ किया वह ध्यान देने योग्य नहीं है । वह तो बाल-सुलभ चपलता थी। तदुपरान्त कुमारों के व्यवहार पर वे बहुत क्रुद्ध हुए थे। शक्ति में जिस प्रकार आप अग्रगण्य हैं उसी प्रकार आपकी भक्ति में राजा प्रजापति अग्रगण्य हैं । राजकुमारों के अपराध के लिए वे स्वयं दोषी हैं यह बात उन्होंने बार-बार कही है। उन्होंने आपकी आज्ञा शिरोधार्य की है और ये उपहार दिए हैं।' ऐसा कहकर दूत चप हो गया; किन्तु अश्वग्रीव दूसरी बात सोच रहे थे। नैमित्तिकों की भविष्यवाणी की एक बात तो सच निकली। सिंह-हत्या वाली द्वितीय बात यदि सच हो जाए तो भय का कारण होगा।
(श्लोक ३४३-३५३) ऐसा सोचकर उन्होंने अन्य दूत द्वारा प्रजापति को निर्देश दिया कि सिंह से शष्यक्षेत्र की रक्षा करो। (श्लोक ३५४)
यह आदेश प्राप्त होते ही राजा ने कुमारों को बुलवाया। बोले-'तुम्हारे दुर्व्यवहार के कारण सिंह से शष्यक्षेत्र की रक्षा का अभावित आदेश मिला है। यदि आदेश पालन नहीं करता हूं तो अश्वग्रीव यम-सा व्यवहार करेगा और यदि पालन करता हूं तो सिंह वहां यम रूप में अवस्थित है। जो भी हो अब तो अनचाही मृत्यु हमारे सम्मुख है। सिंह से शष्य क्षेत्र की रक्षा के लिए अब मैं रवाना होऊँगा।' राजपुत्र बोले-'अश्वग्रीव का पराक्रम तो इससे ही जाना जाता है कि वह एक पशु सिंह से भयभीत है। पिताजी, आप यहीं रहें, हम अभी रवाना होते हैं उस सिंह को निहत करने के लिए । हे नरसिंह, इसके लिए आप वहां क्यों जाएँगे ?'
(श्लोक ३५५-३५९) चिन्तित प्रजापति बोले- 'पुत्र, तुम लोग अभी बालक हो।