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__शक्र के स्तुति कर चुकने के पश्चात् भगवान् शतलनाथ स्वामी ते अमृत तुल्य वाणी में देशना दी
'इस संसार में सब कुछ क्षणिक और नानाविध दुःखों का कारण है। अतः मोक्ष के लिए प्रयत्न करना चाहिए। मोक्ष संवर द्वारा प्राप्त होता है। समस्त प्रकार के आश्रव का निरोध ही संवर है। संवर दो प्रकार के हैं : द्रव्य संवर और भाव संवर । कर्म पुद्गलों के आगमन निरोध द्रव्य संवर है। जिससे संसार का हेतु रूप परिणति और क्रिया का त्याग होता है वह भाव संवर है । जिस-जिस उपाय से जो-जो आश्रव का निरोध होता है उसी आश्रव को रोकने के लिए विज्ञों को वही वही उपाय ग्रहण करना उचित है। क्षमा से क्रोध, नम्रता से मान, सरलता से माया और निःस्पृहता से लोभ रूप आश्रव को रोको। बुद्धिमान मनुष्यों का यह कर्तव्य है कि वे अखण्ड संयम द्वारा इन्द्रियों के विषय को नष्ट करें जो कि विष के समान मनुज को असंयत और उन्मादी कर देता है। मन, वचन और काय योग के लिए आश्रव को तीन गुप्तियों रूपी अंकुश से वश में करें और प्रमाद को अप्रमत्त भाव से संवरण कर समस्त प्रकार के सावध योगों के त्याग द्वारा पूर्ण विरति रूप संवर की आराधना करें।
(श्लोक ८९-९६) _ 'संवर की आराधना करने वाले को सर्वप्रथम सम्यग दर्शन द्वारा मिथ्यात्व और मन की पवित्रता एवं शुभ्र ध्यान द्वारा आर्त और रौद्र ध्यान पर विजय प्राप्त करना उचित है। (श्लोक ९७)
_ 'अनेक द्वार विशिष्ट घर के लमस्त दरवाजे यदि खुले रहे और वह राह के किनारे अवस्थित हो तो राह की धूल उसमें अवश्य ही प्रविष्ट होगी एवं वह धूल तैलादि स्नेह पदार्थों के संयोग से उसमें संलग्न होकर उसे धूमिल कर देनी; किन्तु घर के समस्त दरवाजे यदि बन्द रहें तो धूल प्रवेश का और संलग्न होने का अवसर ही नहीं मिलेगा । अथवा सरोवर में जल प्रवेश की समस्त प्रणाली यदि खुली रहे तब उसमें सभी ओर से जल आकर प्रविष्ट होगा, यदि खली नहीं रहेगी तो जल प्रविष्ट नहीं होगा। अथवा जहाज में यदि छिद्र रहेगा तो उस छिद्र से जल अवश्य ही प्रवेश करेगा, यदि इस छिद्र को वन्द कर दिया जाए तो प्रवेश नहीं करेगा। इसी प्रकार यदि आत्मा में कर्म पुद्गल प्रवेश के समस्त