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________________ 76] सौधर्मेन्द्र ने कांपने का कारण जानने के लिए अवधिज्ञान का प्रयोग किया । दीपालोक में जिस प्रकार वस्तु दृष्ट होती है उसी प्रकार सौधर्मेन्द्र ने अवधिज्ञान से भगवान् को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ है अवगत किया । वे उसी समय रत्न - सिंहासन और रत्न- पादुकाओं को त्यागकर उठ खड़े हुए। कारण, सज्जनों को स्वामी की प्रवज्ञा का बहुत भय रहता है । गीतार्थ गुरु का शिष्य गुरु कथित अनुकूल भूमि पर जिस प्रकार पांव रखता है उसी प्रकार वे अर्हतु की ओर सात-आठ कदम आगे आए और बाएँ घुटने को झुकाकर दाहिने घुटने को दोनों हाथों और मस्तक को जमीन से स्पर्श कर प्रभु को नमस्कार किया । फिर खड़े होकर पीछे मुड़कर उन्होंने सिंहासन को उसी प्रकार अलंकृत किया जिस प्रकार केशरी सिंह पर्वत शिखर को अलंकृत करता है । तदुपरान्त समस्त देवतात्रों को बुलाकर ऋद्धि और देवों सहित प्रभु के निकट आए अन्य इन्द्र भी प्रासन कम्पित होने से स्वामी ने केवल ज्ञान प्राप्त किया है जानकर मैं पहले जाऊँगा ऐसी स्पर्द्धा से प्रभु के निकट आए । । (श्लोक ३४५-३५४) फिर कार्यकर्त्ता आए । वायुकुमार देवों ने एक योजन प्रमाण भूमि से कंकरादि दूर किए । मेघकुमार देवताओं ने शरद्कालीन मेघ जिस प्रकार धूल को शान्त करता है उसी प्रकार वहां सुगन्धित जल की वर्षा कर धूल को शान्त किया । अन्य व्यन्तर देवों ने चैत्य के मध्य भाग की तरह कोमल स्वर्ण रत्नों की शिलानों से उस भूमि को समतल किया । प्रातः कालीन पवन की तरह ऋतु की अधिष्ठायिका देवियों ने घुटने तक विकसित फूलों की वर्षा की । भुवनपति देवताओं ने भीतर मरिणस्तूप निर्मित कर उसके चारों और स्वर्ण किनारा बनाकर चांदी के प्राकार का निर्माण किया । देवतानों ने इसके भीतर रत्नों का किनारा बनाने के लिए मानो अपनी ज्योति एकत्र कर रहे हों ऐसे सुवर्णमय द्वितीय प्राकार का निर्माण किया । उसके भीतर वैमानिक देवताओं ने माणिक्य का प्रान्तभाग बनाकर तृतीय प्राकार की रचना की । प्रत्येक प्राकार में जम्बूद्वीप की तरह मानो मन को प्राश्रय देने के लिए स्थान हों ऐसे चार-चार सुन्दर द्वार निर्मित किए । प्रत्येक द्वार पर मरकत मरिण - मय पत्रों के तोरण बनाए । तोरणों के दोनों श्रोर श्रेणीबद्ध कमल से ढके कुम्भ रखे । वे समुद्र के चारों ओर सन्ध्याकाल में अवस्थित 1
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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