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ने सफलता के साथ किया है। शब्दावली में कोमलकान्त पदावली
और प्राञ्जलता पूर्णरूपेण समाविष्ट है । इसके सम्पादन में यह विशेष रूप से ध्यान रखा गया है कि अनुवाद कौन से पद्य से कौन से पद्य तक का है, यह संकेत प्रत्येक गद्यांश के अन्त में दिया गया है । हम श्री गणेश ललवानी और श्रीमती राजकुमारी बेगानी के अत्यन्त आभारी हैं कि इन्होंने इसके प्रकाशन का श्रेय प्राकृत-भारती को प्रदान किया और हम उनसे पूर्णरूपेण आशा करते हैं कि इसी भांति शेष 8 पर्वो का अनुवाद भी हमें शीघ्र ही प्रदान करें जिससे हम सम्पूर्ण ग्रन्थ धीरे-धीरे पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर सकें।
पारसमल भंसाली
अध्यक्ष जैन श्वे. नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर
म. विनयसागर देवेन्द्रराज मेहता निदेशक
सचिव प्राकृत भारती अकादमी प्राकृत भारती अकादमी जयपुर
जयपुर