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56] तरह उन दोनों कुमारों को कभी गोद में, कभी वक्ष पर, कभी कन्धे पर, कभी माथे पर बैठाते। भ्रमर जिस प्रकार पद्म की सुगन्ध लेता है उसी प्रकार प्रीतिवश वे उनके मस्तकों को सूघते और तृप्त होते । राजा की अंगुली पकड़ कर उनके दोनों ओर चलने वाले वे राजकुमार मेरु पर्वत के दोनों ओर संक्रमण करने वाले दो सूर्यों से प्रतीत होते थे। योगी जिस प्रकार प्रात्मापरमात्मा का ध्यान करते हैं उसी प्रकार राजा जितशत्रु परम प्रानन्द में कुमारों का ध्यान करते । स्वगह में जन्म लेने वाले कल्पवृक्ष की तरह वे बार-बार उनको देखते और चतुर शुक की भांति बार-बार उनका नाम लेकर पुकारते । राजा के प्रानन्द और इक्ष्वाकु वंश की लक्ष्मी के साथ-साथ वे दोनों राजकुमार वृद्धि को प्राप्त होने लगे।
(श्लोक ३-२१) महात्मा अजित कुमार ने समस्त कला, न्याय, शब्द शास्त्र आदि को अपने आप ही अधिगत कर लिया। कारण जिनेश्वर जन्म से ही मति, श्रुत और अवधिज्ञान के धारक होते हैं । । श्लोक २२) .. शुभ मुहूर्त देखकर उत्सव पूर्वक सगर कुमार को राजाज्ञा से उपाध्याय के पास पढ़ने के लिए भेजा गया। समुद्र जिस प्रकार नदियों का पान करता है उसी प्रकार सगर कुमार ने अल्प दिनों में ही शब्दशास्त्र का पान कर डाला। प्रदीप जिस प्रकार अन्य प्रदीप से ज्योति ग्रहण करता है उसी प्रकार सुमित्रापुत्र सगर ने उपाध्याय से अनायास ही साहित्यशास्त्र का ज्ञान अर्जन कर लिया। साहित्य रूपी लता के पुष्प की तरह और कानों के लिए रसायन तुल्य स्वरचित नवीन काव्यों द्वारा वीतराग प्रभु का स्तव कर उन्होंने अपनी वाणी को कृतार्थ किया। बुद्धि-प्रतिभा के समुद्र की तरह प्रमाणशास्त्रों को उन्हों ने खनन द्वारा प्राप्त सम्पत्ति की तरह उसी मुहूर्त में प्राप्त कर लिया। जितशत्रु राजा ने जिस प्रकार प्रमोध शरो से शत्रुओ को जय कर लिया था उसी प्रकार सगर कुमार ने भी स्याद्वाद् सिद्धान्त के समस्त प्रतिवादियों को जीत लिया था। छः गुण और चार उपाय और तीन शक्तियाँ इत्यादि प्रयोग रूपी तरग से आकुल और दुर्गाह अर्थशास्त्र रूपी बृहद् समुद्र में उन्हों ने अवगाहन किया । औषध, रस, वीर्य और उसके विपाक के ज्ञान से सम्बन्धित ज्ञानदीप तुल्य अष्टांग आयुर्वेद का उन्हो ने बिना कष्ट के अध्ययन कर