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तृतीय सर्ग इन्द्र की प्राज्ञा से प्रागत पांचों धात्रियां प्रभु का एवं राजा की आज्ञा से प्रागत धात्रियाँ सगर कुमार का लालन-पालन करने लगीं। इन्द्र ने अजित प्रभु के हस्त कमल के अंगूठे में अमृत का संचार कर दिया था। अतः वे उसी का पान करने लगे कारण तीर्थंकर स्तन-पान नहीं करते।
(श्लोक १-२) उपवन के वक्ष जिस प्रकार नहर के जल का पान करते हैं उसी प्रकार सगर कुमार धात्रियों के अनिन्दित स्तन पान करने लगे । वृक्षों की दो शाखाओं की तरह या हस्तियों के दो दाँतों की तरह दोनों राजकुमार प्रतिदिन बढ़ने लगे। पर्वत पर जिस प्रकार सिंह शावक प्रारोहण करता है उसी प्रकार दोनों राजकुमार बड़े होकर राजा की गोद में चढ़ने लगे। उनकी मनोमुग्ध कारी हँसी से माता-पिता आनन्दित होते और उनके वीरत्व प्रदर्शक आचरण पर आश्चर्य चकित होते । केशरी सिंह शावक जिस प्रकार पिंजड़े में बन्द नहीं रहते उसी प्रकार उन दोनों राजकुमारों को धात्रियों के बार-बार पकड़ कर गोद में बैठाने पर भी वे दोनों बार-बार भाग जाते। वे स्वच्छन्दतापूर्वक इधर-उधर दौड़ते, धात्रियाँ उनके पीछे दौड़तीं और क्लान्त हो जातीं। कारण, महात्माओं के वय की बात गौण होती हैं । वेग में वायु को भी परास्त करने वाले वे दोनों राजकुमार खेलने के लिए तोते मयूर प्रादि पक्षियों को पकड़ लेते। उत्तम जातीय हस्ती शावकों की तरह स्वच्छन्दतापूर्वक चलते-फिरते वे नवीन-नवीन चातुर्य से धात्रियों को विमूढ़ कर देते। उनके चरण कमलों में पहने अलङ्कारों के छुम छुम शब्द करने घुघरु भ्रमर की तरह शोभित होते थे। उनके गले से छाती तक लटकती स्वर्ण और रत्नों की लड़ियां आकाश में चमकती विद्य त-सी शोभान्वित होती, स्वेच्छा से क्रीड़ारत कुमारों के कानों में पहने सुन्दर सुवर्ण कुण्डल जल में संक्रमण करने वाले सूर्य विलास को प्रकट करते । चलने के समय हिलती उनके माथे की शिखा शिशु मयूर के नृत्य की शोभा को धारण करती। उत्ताल तरंग जिस प्रकार राजहंस को एक पद्म से दूसरे पद्म पर ले जाती है उसी प्रकार राजा उन्हें एक गोद से दूसरी गोद में ले जाते। जितशत्र राजा रत्न अलङ्कारों की