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________________ 48] उन्होंने धूपाग्नि को प्रज्वलित किया । धूपदान ऊंचा करते समय देवगरण वाद्य बजा रहे थे । वह वाद्य ध्वनि ऐसी लग रही थी मानो वह उच्च ध्वनिकारी महाघोष घण्टे को भी पराजित कर रही हो । फिर ज्योतिर्मण्डली की लक्ष्मी का अनुसरण करने वाली और उच्च शिखा मण्डलयुक्त भारती कर सात-आठ कदम पीछे हटकर प्रणाम कर रोमांचित शरीर से प्रच्युतेन्द्र ने इस भाव से स्तुति की - ( श्लोक ४६० - ४७० ) हे प्रभो, शुद्ध स्वर्ण खण्ड-सी द्युति से प्रकाश को प्राच्छादन करने वाला और प्रक्षालन बिना पवित्र आपका शरीर किस पर आक्षेप न करें ? ( अर्थात् अन्य की तुलना में आपका शरीर सुगन्धित पदार्थों के विलेपन बिना ही नित्य सुगन्धित है ।) इससे देवियों के नेत्र मन्दारमाला की तरह भ्रमर से हो जाते हैं । ( अर्थात् जैसे मन्दार पुष्पों की माला पर भौंरे मँडराते हैं उसी प्रकार देवांगनाओं की प्राखें आपके शरीर पर फिरा करती हैं ।) हे नाथ, दिव्य अमृत के रसास्वाद के पोषण से मानो नष्ट हो गया हो ऐसे रोग रूपी सर्प-समूह आपकी देह में प्रवेश नहीं कर सकते । ( अर्थात् आपके शरीर पर किसी रोग का असर नहीं होता है ।) दर्परण तल में लीन प्रतिविम्ब जैसे आपके शरीर पर स्वेद प्रवाहित होना क्या सम्भव है ? ( अर्थात् आपके शरीर में कभी पसीना नहीं श्राता ।) हे वीतराग, आपका अन्तःकरण ही केवल राग रहित नहीं है आपकी देह का रक्त भी दुग्ध-सा श्वेत है । प्रापके अन्य लक्षण पृथ्वी से स्वतन्त्र हैं यह मैं कह सकता हूं । कारण आपका मांस भी उत्कृष्ट है । श्रवीभत्स श्रोर श्वेत है । जल और स्थल उत्पन्न पुष्पमास्यों को छोड़कर भ्रमर आपके निश्वास की सुगन्ध का ही अनुसरण करते हैं । आपकी संसार स्थिति भी लोकोत्तर और चमत्कारी है । कारण आपका श्राहार-विहार (शौच क्रिया) खों से दिखाई नहीं देता । ( श्लोक ४७१-४७८) इस भांति इन्दू ने उनकी अतिशय गर्भित भाव-स्तुति की श्रीर कुछ पीछे हटकर खड़े हो गए। वहाँ वे प्रभु भक्ति सम्पन्न होकर उनकी सेवा करने के लिए युक्त कर से स्थित हो गए । तब अवशिष्ट बासठ इन्द्रों ने भी अपने प्रपने परिवार सहित प्रच्युतेन्द् की तरह प्रभु का अभिषेक किया । प्रभिषेक के पश्चात् स्तुति
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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