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________________ 46] पद्मादि द्रह से उन्होंने मिट्टी, जल और कमल लिए। समस्त कूल पर्वत से, समस्त वैताढय पर्वत से, समस्त विजय से, समस्त मध्यवर्ती पर्वतों से, देव कुरु और उत्तर कुरु से, सुमेरु पर्वत की परिधि में स्थित भद्रशाल, मन्दन, सोमनस और पाण्डुक वन से और इसी भांति मलय, ददुर प्रादि पर्वतों से श्रेष्ठ-श्रेष्ठ औषधि, गन्ध, पुष्प और सरसों उन लोगों ने ग्रहण की। वैद्य जिस प्रकार औषधि एकत्र करता है, गन्धी सुगन्धित पदार्थ, उसी प्रकार देवताओं ने सभी वस्तुएं एकत्र की। तदुपरान्त सादर सब वस्तुओं के लिए वे इतनी द्रुतगति से स्वामी के निकट पाए मानो वे अच्युत्तेन्द्र के मन के साथ-साथ स्पर्धा कर रहे हों। (श्लोक ४१८-४३४) अच्युतेन्द्र ने दस हजार सामानिक देवता, लेतीस त्रायस्त्रिश देवता, सात सैन्यवाहिनी, उनके सात सेनापति पौर चालीस हजार मात्मरक्षक देवता सहित उत्तरीय वस्त्र धारण कर प्रभु के समीप जाकर उन्हें पुष्पांजलि देकर चन्दन से चचित और बिकसित कमलों से पाच्छादित एक हजार माठ कलश लिए फिर भक्ति से पानत स्वयं की तरह मानतमुख कलशों से प्रभु का अभिषेक करना प्रारम्भ किया । यद्यपि वह जल पवित्र था फिर भी स्वर्णालङ्कारों में मणि जिस प्रकार अधिक प्रकाशित होती है उसी प्रकार प्रभु के सम्पर्क से जल और भी पवित्र हो गया। जलधारा की ध्वनि से कलश से शब्द बाहर निकल रहे थे। लगता था मानो वे स्नात्र विधि का मन्त्र पाठ कर रहे हों। कुम्भ से गिरते जल का प्रवाह प्रभु की लावण्य सरिता में मिलकर त्रिवेणी संगम को प्रकाशित कर रहा था। प्रभु के सुवर्ण और गोरे वर्ष में प्रसारित वह जल स्वर्णमय हेमवन्त पर्वत के कमल खण्ड में प्रसारित गंगा जल की तरह शोभा पा रहा था। समस्त शरीर में फैले उस मनोहर और निर्मल जल के कारण प्रभु ने वस्त्र धारण कर रखा हो ऐसे लग रहे थे । वहाँ भक्ति-भाव से प्राकुल देवताओं में से कोई छत्र धारण कर रहे थे। कोई चैचर डुला रहे थे। कोई धूपदान लिए खड़े थे । कोई पुष्पगन्ध ग्रहण कर रहे थे। कोई जय-जय शब्द कर रहे थे। कोई हाथ में दण्ड लिए तर्य बजा रहे थे। कोई शङ्ख बजा रहे थे। इससे उनके गले और मुख फूल उठे थे। कोई कांस्य झांझ बजा रहे थे । कोई अखण्डित रत्नदण्ड से झालर बजा रहे । कोई डमरू बजा रहे थे। कोई डिण्डिम पीट रहे थे। कोई नर्तकी की तरह ताल सुर सहित
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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