SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 32] विश्व पर कृपा करने वाले और इस अवपिणी में जन्मे तीर्थङ्कर की आप जननी हैं। हे माता, हम अधोलोक निवासिनी दिककुमारियां तीर्थङ्कर का जन्मोत्सव करने के लिए यहां पाई हैं। प्राप हमसे भयभीत मत होइएगा। (श्लोक १६१-१८३) __ ऐसा कहकर प्रणाम करते हुए वे ईशान कोण की तरफ गई और वैक्रिय समुद्घात से अपनी शक्तिरूपी सम्पत्ति से क्षणमात्र में संवर्तक वायु उत्पन्न की । सभी ऋतुषों के पुष्प के सर्वस्व सुगन्ध वहनकारी, सुखकारी, मृदु, शीतल और तिर्यक प्रवाहित उस पवन ने सूतिकागृह की चारों दिशात्रों में एक योजन भूमि पर्यन्त तृणादि दूर कर भूमितल को परिष्कृत किया। तदुपरान्त वे कुमारियां भगवान् और उनकी माता के समीप खड़े होकर गीत गाने लगी। . (श्लोक १८३-१८७) फिर उर्द्धरुचक में स्थिति सम्पन्ना नन्दनवन के कट में रहने वाली दिव्य अलङ्कार पहने हुए मेघङ्करा, मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, सुवस्सा, वत्समित्रा, वारिषेणा और वलाहका नामक पाठ दिककुमारियां पहले की तरह महत्तरा, सामानिक अंगरक्षिका, सैन्य और सेनापतिगण सहित वहां पाई। उन्होंने स्वामी के लिए उस प्रसिद्ध सूतिकागृह में जाकर जिनेन्द्र और जिनमाता को तीन बार प्रदक्षिणा देकर पूर्व देवियों की तरह माता को अपना परिचय दिया और उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति की और आकाश में मेघों का सर्जन किया। उन मेघों ने भगवान् के जन्म स्थान के चारों ओर एक योजन पर्यन्त न कम न अधिक, गन्धोदक की वृष्टि की। तपस्या से जैसे पाप शान्त होते हैं, पूर्णिमा की चन्द्रिका से जैसे अन्धकार दूर होता है उसी प्रकार उसी समय उस वृष्टि से धूल शान्त हो गई अर्थात् धूल उड़ना बन्द हो गया। फिर उन्होंने रंगभूमि में रंगाचार्य की तरह तत्काल विकसित और विचित्र पुष्पों को वहां फैला दिया। इस प्रकार कपूर और प्रगुरु धूप से मानो लक्ष्मी का निवास हो उसी भांति उस भूमि को उन्होंने सुगन्धित कर दिया। फिर वे तीर्थङ्कर और उसकी माता से सामान्य दूरी पर खड़ी होकर भगवान का निर्मल गुणगान करने लगीं। (श्लोक १८८-१९८) . तत्पश्चात् नन्दा, नन्दोत्तरा, आनन्दा, प्रानन्दवर्द्धना, विजया, वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजिता नामक पूर्व रुचकाद्रि में निवास करने वाली पाठ दिक्कुमारियां निज समस्त ऋद्धि और पूर्ण वलसह
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy