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________________ 174] सद्भाग्य में वृद्धि हो। मैंने जुपाड़ी की भांति किस प्रकार उस शत्रु को जीता वह सुनाता हूं। हे शरेण्य, मैं अपनी पत्नी को आपकी शरण में रखकर ज्यों ही प्राकाश में उड़ा उस दुष्ट विद्याधर को सर्प जैसे नकुल को देखता है उसी प्रकार देखा । फिर हम दोनों दुर्जय बलीवर्द की तरह गरजने लगे और परस्पर एक दूसरे को युद्ध के लिए ललकारने लगे-अच्छा हुमा प्राज मैंने तुझे देखा। स्व-बाहबलों पर घमण्ड करने वाले, तू पहले मुझ पर प्रहार कर ताकि मैं अपनी भुजाओं एवं देवताओं के कौतुक को पूर्ण करूं। अन्यथा अस्त्र परित्याग कर, दरिद्र जैसे गौ-ग्रास आहार करता है उसी प्रकार दसों उँगलियाँ दातों में दबाकर बचने की इच्छा से निःशंक होकर चला जा। इस भांति परस्पर बोलते-सुनते ढालतलवार रूप पंखों को फैलाते मुर्गे की तरह युद्ध करने लगे। चारीप्रचार (नृत्य में कुछ चेष्टानों) में चतुर रंगाचार्य की तरह हम एक दूसरे के प्रहार से बचते हुए आकाश में घूमने लगे। हम तलवार रूपी शृङ्ग से गण्डार की तरह एक दूसरे पर प्रहार कर कभी पागे तो कभी पीछे हटने लगे। क्षण भर में हे राजन्, आपको अभिनन्दन करने की तरह मैंने उसका बायाँ हाथ काटकर जमीन पर गिरा दिया। आपको आनन्दित करने के लिए उसका एक पैर कदलीस्तम्भ की तरह खेल ही खेल में काटकर जमीन पर फेंक दिया। फिर हे राजन्, मैंने कमल-नाल की तरह उसका दाहिना हाथ भी काटकर पृथ्वी पर पटक दिया। फिर वृक्ष की डाल की तरह उसका पैर तलवार से काटकर प्रापके सम्मुख फेंक दिया। तदुपरान्त उसका मस्तक, उसको देह भी अलग-अलग कर यहाँ फेंक दी। इस भाँति मैंने भरतक्षेत्र के छह खण्डों की भांति उसके छह खण्ड कर दिए। अपनी कन्या की तरह मेरी स्त्री की न्यास रूप में रक्षा करने वाले आप ही मेरे शत्रु के हननकारी हैं। मैं तो केवल निमित्त मात्र हूँ । आपकी सहायता के बिना उस शत्रु को मैं निहत नहीं कर सकता था। प्रज्वलित अग्नि भी हवा की सहायता के बिना तृण को नहीं जला सकती। आजतक मैं स्त्री या नपुंसक की भाँति ही था । अाज आपने मुझे शत्रु को निहत करने का पौरुष दिया है। आप ही मेरे पिता-माता, गुरु और देव हैं। आप जैसा उपकारो अन्य कोई नहीं हो सकता। आप जैसे उपकारी पुरुषों के प्रभाव से ही सूर्य विश्व को प्रकाशित करता है, चन्द्र प्रानन्दित ; वर्षा समय पर जल देती
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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