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________________ ठूठ हो जाता है । जिस मनुष्य की नेत्रशक्ति कभी गिद्धों की तरह तीव्र थी वही आँखों की रोशनी खोकर कभी देखने में भी असमर्थ हो जाता है। हाय रे मानव देह ! क्षण में सुन्दर तो क्षण में असुन्दर, क्षण में दृष्ट तो क्षरण में अदृष्ट हो जाता है। इसी भाँति विचार करते-करते मैं मन्त्र-शक्ति की भांति संसार से विरक्त हो गया। तब मैंने महामुनि के निकट जाकर तृण के लिए अग्नि की तरह एवं निर्वाण प्राप्ति के लिए चिन्तामणि रत्न तुल्य महाव्रतों को ग्रहण कर मुनि दीक्षा ले ली।' (श्लोक ११०-१३०) उनकी बात सुनकर पुनः मुनिश्री को प्रणाम कर वे विवेकी और भक्तिवान् राजा बोले-'पाप जैसे निरीह और ममताहीन पूज्य सत्पुरुष हम लोगों के लिए पुण्यवश ही पृथ्वी पर विचरण करते हैं। सथन तृणों से ढके अन्धकप में जिस प्रकार पशु गिर पड़ते हैं उसी प्रकार मानव इस अति घोर संसार के विषय सुखों में पतित हो जाता है और दुःख पाता है । उस दुःख से बचाने के लिए हे दयालु भगवन्, प्रतिदिन घोषणा की तरह आप देशना देते रहते हैं । इस प्रसार संसार में गुरुवाक्य ही एकमात्र सार है, अत्यंत प्रिय स्त्री, पुत्र और बन्धु-बान्धव नहीं। अब मुझे मेरी विद्युत-सी चंचल लक्ष्मी, भोग के समय सुखदायी; किन्तु परिणाम में भयंकर, विष के समान विषय भोग और केवल इसी जन्म के लिए मित्र-से स्त्री, पुत्रों से कोई प्रयोजन नहीं है । अतः हे भगवन्, मुझ पर कृपा करिए और संसार-समुद्र को पार करने में नौका सम दीक्षा दीजिए। जब तक मैं नगर में जाकर पुत्र को राज्य देकर लौट नहीं आता हैं तब तक हे दयालु पूज्यपाद, आप इसी स्थान को अलंकृत करते रहें। (यह मेरी प्रार्थना है ।)' (श्लोक १३१-१३८) आचार्यश्री उत्साहवर्द्धक वाणी में बोले-'हे राजन्, तुम्हारी इच्छा अति उत्तम है । पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण तुम तत्त्वों को पहले से ही जानते हो। इसलिए तुम्हें देशना देना दृढ़ मनुष्य के हाथों सहारा देने का निमित्त मात्र है। गोपालक की विशेषता से गाय जिस प्रकार कामधेनु जैसी होती है इसी भांति तुम जैसों को दी हुई दीक्षा तीर्थङ्कर पद प्रदायक होती है । तुम्हारी इच्छा पूर्ण करने के लिए मैं यहीं अवस्थित हूं। कारण, मुनि भव्यजनों का उपकार करने के लिए ही विचरण करते हैं।' (श्लोक १३९-१४२)
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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