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________________ 170] इतनी दूर से आकर मुझसे यह क्या मांगा ? तुम मुझे अपने शत्रु को दिखाओ ताकि मैं उसे निहत करूं और तुम निःशंक होकर संसार के सुख भोग करो। (श्लोक ४००-४०३) राजा की वाणी रूपी अमृत के प्रवाह से उसकी श्रवणेन्द्रिय भर उठी। वह हर्षित होकर राजा से कहने लगा-सोना, रूपा, रत्न, पिता, माता, पुत्र, अन्य जो कुछ भी है वे अल्प विश्वास से ही दूसरे के पास रखे जा सकते हैं; किन्तु स्व-पत्नी को तो बहुत बड़े विश्वस्त के पास भी नहीं रखा जा सकता। हे राजन्, ऐसा विश्वासपात्र आपके अतिरिक्त और कोई नहीं है। कारण चन्दन का स्थान एकमात्र मलयाचल ही है। आप मेरी स्त्री को न्यास रूप में स्वीकार लें तो मैं समझगा कि आपने मेरे शत्रु को ही निहत कर दिया है। हे राजन्, आपने मेरी पत्नी को न्यास रूप में स्वीकार कर लिया है इससे मैं आश्वस्त हो गया हूं। मैं अभी जाकर अपने शत्रु को निहत कर उसकी पत्नी को विधवा करूंगा। आपके सिंहासन पर बैठे रहते ही मैं उत्पतित् होकर अपने पराक्रम का प्रदर्शन करता हूँ। आप प्राज्ञा दीजिए ताकि गरुड़ की तरह स्वच्छन्द गति से मैं आकाश में चला जाऊँ। (श्लोक ४०४-४११) राजा ने कहा- हे विद्याधर वीर, तुम स्वच्छन्दतापूर्वक जानो। तुम्हारी पत्नी मेरे घर अपने पितृ-गृह की भांति ही अवस्थान करेगी। (श्लोक ४१२) फिर वह व्यक्ति पक्षी की तरह आकाश में उड़ा और दो पंखों की तरह तीक्ष्ण और प्रकाशवान तलवार एवं बरछी को प्रसारित करते हुए आकाश में अदृश्य हो गया। राजा ने उसकी पत्नी को कन्या की तरह आश्वासन दिया जिससे स्वस्थ होकर वह वहाँ बैठ गयी। अपने सिंहासन पर बैठे हुए ही राजा ने आकाश में मेघ गर्जन-सा सिंहनाद सुना । विद्युत की कड़-कड़ ध्वनि-सी तलवार और ढालों की खनखनाहट सुनी। यह रहा मैं, यह रहा मैं, नहीं नहीं, खड़े रहो, खड़े रहो, मृत्यु के लिए प्रस्तुत हो जानो-पादि शब्द आकाश से प्रवाहित होते हुए पाने लगे। राजा सभा में बैठे अन्य सभासदों के साथ आश्चर्यान्वित होकर बहुत देर तक मानों ग्रहण देख रहे हों इस प्रकार प्राकाश की ओर देखते रहे। उसी समय राजा के निकट रत्न कड़े से शोभित एक हाथ पाकर गिरा । आकाश से गिरा वह हाथ किसका है जानने
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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