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________________ horthcom [169 उसे देखकर राजा ने पूछा-तुम कौन हो? यह स्त्री कौन है ? तुम यहाँ क्यों आए हो? (श्लोक ३८४-३८६) उसने कहा-राजन्, मैं विद्याधर हं। यह विद्याधरी मेरी पत्नी है। एक विद्याधर से मेरी शत्रुता हो गयी है। उस लम्पट दुरात्मा ने मेरी स्त्री का उसी प्रकार हरण कर लिया जिस प्रकार राहु चन्द्र-सुधा को हर लेता है। मैं उसे छुड़ाकर लाया हूँ । कारण हे राजन्, नारी का अपमान तो पशु भी नहीं सह सकते। इस पृथ्वी को धारण कर प्रापके प्रचण्ड भुजदण्ड सार्थक हो गए हैं। दरिद्रों के दारिद्रय को दूर कर आपकी सम्पत्ति सफल हुई है। भयभीत को अभयदान देकर प्रापका पराक्रम कृतार्थ हुपा है। विद्वानों के संशय को दूर कर आपकी विद्वत्ता अमोघ बन गयी है। विश्व के कण्टकों को दूर करने में प्रापका शस्त्र-कौशल सफल हुना है। इसके अतिरिक्त आपके अन्य गुण भी विभिन्न प्रकार के परोपकार में कृतार्थ हुए हैं। आप पर-स्त्री को भगिनी समान समझते हैं यह भी विश्व-विख्यात है। अब यदि आप मेरा एक उपकार करें तो आपके ये सभी गुण विशिष्ट फलदायी होंगे। मेरी पत्नी के मेरे साथ रहने से मैं बँध गया हूं। इसलिए कपटी शत्रु से युद्ध नहीं कर सकता। मैं आपसे हाथी, अश्व, पदातिक सेना नहीं मांगता। केवल आपकी आत्म-सहायता चाहता हूँ। अतः न्यास रूप में रखी सम्पत्ति की तरह आप मेरी पत्नी की रक्षा करें क्योंकि आप पर-स्त्री के लिए सहोदरं हैं। कई अन्य भी रक्षा करने में समर्थ हैं; किन्तु वे पर-स्त्रीगामी होते हैं। कई परस्त्रीगामी नहीं होते; किन्तु दूसरे की रक्षा करने में समर्थ नहीं होते; किन्तु पाप तो पर-स्त्रीगामी भी नहीं हैं और न ही अन्य की रक्षा करने में असमर्थ हैं। इसीलिए बहुत दूर से आकर मैंने आपसे यह प्रार्थना की है। यदि आप मेरी पत्नी को न्यास रूप में स्वीकार करें तो यद्यपि समय बलवान है फिर भी यह समझ लेना चाहिए कि शत्रु विनष्ट हो जाएगा। (श्लोक ३८७-३९९) उसकी बात सुनकर हास्य रूपी चन्द्रिका से जिनका मुखमण्डल उल्लसित है वे उदार और चरित्रवान् राजा बोले-हे भद्र, जिस प्रकार कल्पवृक्ष से केवल पत्ते मांगना, समुद्र से जल, कामधेनु से दुग्ध, रोहणाद्रि से पत्थर, कुबेर के भण्डारी से अन्न और मेघ से केवल छाया की प्रार्थना करना हास्यास्पद है वैसे ही तुमने
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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