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164] नहीं हैं। ये जरा भी शास्त्रों के रहस्य को नहीं समझते । ये शुक की भांति पाठ रटकर ही अभिमानी हो गए हैं। मिथ्या गाल बजाने वाले एवं गधे की पूछ को पकड़े रहने वाले व्यक्तियों की ही यह वाणी है, किन्तु जो रहस्यार्थ को जानते हैं वे तो विवेचना करके ही बोलते हैं। सार्थवाह की प्रतिमूत्ति को यदि ऊँट की पीठ पर बैठा दें और वह देशान्तरों में घूम आए तो क्या यह कहा जा सकता है कि वह पथों का ज्ञाता है ? जिसने कभी जल में पांव नहीं रखा वह लौकी के खोल को बाँधकर तैर सकता है; किन्त क्या उससे यह कहा जाएगा कि वह तैरना जानता है ? इसी तरह उन्होंने गुरु के कथन से शास्त्रों को पढ़ा है; किन्तु उसका रहस्यार्थ बिल्कुल नहीं जानते । यद्यपि इन दुर्बुद्धियों को हमारी बात का विश्वास नहीं होगा फिर भी क्या विश्वास प्रदानकारी वह सातवां दिन अधिक दूर है ? हे राजेन्द्र, महासमुद्र यदि अपनी उत्ताल तरंगों से जगत को जलमय कर हमारे वचन को सत्य कर देता है तो क्या ज्योतिष ग्रन्थ के ज्ञाता आपके ये सभासद् पर्वत के पक्षियों की तरह उड़ते रहेंगे ? वृक्षों की तरह आकाश में फूल खिला है देखेंगे ? अग्नि को जल की तरह शीतल कहेंगे ? बन्ध्या के क्या धेनु की तरह पुत्र जन्माएंगे ? भैंस की तरह क्या गर्दभ को सींग वाला कहेंगे? पत्थर जहाज की तरह जल में तैर रहा है कहेंगे ? नारकियों को क्या वेदना रहित करेंगे? या इस प्रकार असामञ्जस्यपूर्ण कथन करने वाले ये मूर्ख सर्वज्ञ भाषित शास्त्र को अन्यथा करेंगे? राजन्, मैं सात दिनों तक आपके कर्मचारियों के अधीन रहूंगा। कारण जो मिथ्याभाषी हैं वे इस प्रकार नहीं रह सकते । यदि मेरा कथन सातवें दिन सत्य न हो तो चोर की तरह चाण्डाल द्वारा मुझे दण्ड दें।
(श्लोक ३००-३१९) तब राजा बोले, इस ब्राह्मण की बात संदिग्ध, अनिष्टकर या असम्भव हो या सत्य हो सातवें दिन आप सभी का सन्देह मिट जाएगा। तभी सत्यासत्य की विवेचना की जा सकेगी। फिर उन्होंने उस ब्राह्मण को अपनी बन्धक रखी वस्तु की तरह निज प्रङ्गरक्षक को सौंपा और सभा विसर्जित कर दी । उस समय नगर के लोग विभिन्न प्रकार की बातें करने लगे -पोह ! आज के सातवें दिन महान् कौतुक देख सकेंगे । खेद है कि उन्मत्त की तरह बोलने