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________________ 158] राहु ने ग्रस लिया, पुष्पित वृक्षों को हस्ती ने धराशायी कर दिया, तट पर श्राए जहाज को पहाड़ ने चूर-चूर कर दिया, आकाश में समवेत मेघ को वायु ने छिन्न-भिन्न कर दिया, पके हुए धान्य क्षेत्र दावानल में भस्म हो गया । हाय, धर्म, अर्थ और काम के योग्य तुम विनष्ट हो गए । हे पुत्रो, कृपण धनाढ्य के घर आगत याचक की भाँति तुमलोग मेरे घर ग्राकर प्रकृतार्थ अवस्था में ही यहाँ से चले गए । यह कितने दुःख की बात है । उद्यानहीन चन्द्रिका जिस प्रकार व्यर्थ होती है उसी प्रकार तुम लोगों के बिना चक्रादिरत्न और नवनिधि मेरे किस काम के ? प्राण-प्रिय पुत्रों के बिना यह छह खण्ड का भरत क्षेत्र का राज्य मेरे लिए व्यर्थ है | ( श्लोक १९५-२०२) इस भाँति विलाप करते हुए सगर चक्री को समझाने के लिए वही ब्राह्मण श्रावक अमृत-सी मधुर वाणी में पुनः बोलाहे राजन्, आपके वंश ने पृथ्वी की रक्षा की तरह ज्ञान भी अधिकार में पाया है । अतः आपको अन्य कोई बोध दे यह सम्भव नहीं है । जगत की मोह निद्रा को दूर करने वाले अजितनाथ स्वामी जिनके भाई हैं उसे कोई दूसरा उपदेश दे यह कदापि सम्भव नहीं है । जब कि दूसरे भी यह बात जानते हैं कि संसार आसार है तब आपको तो यह ज्ञात ही होगा । कारण श्राप तो जन्म से ही सर्वज्ञ के सेवक हैं । हे राजन्, पिता-माता, स्त्री, पुत्र और मित्र सभी इस संसार में स्वप्नवत् हैं । जो सुबह था वह मध्याह्न में नहीं रहा और जो मध्याह्न में था वह रात्रि में नहीं इस प्रकार इस संसार में सभी पदार्थ अनित्य हैं । आप तो स्वयं ही तत्त्ववेत्ता हैं अतः धैर्य धारण करिए क्यों कि सूर्य विश्व को प्रकाशित करता है; किन्तु सूर्य को कौन प्रकाशित करेगा ? (श्लोक २०३ - २०९) लवण समुद्र जिस प्रकार लवण और मणियों से व्याप्त है, पक्ष की मध्य रात जैसे अन्धकार और प्रकाश से व्याप्त है, हिमालय जिस प्रकार दिव्य औषधि और हिम से व्याप्त है उसी भाँति उस ब्राह्मण के उपदेश और पुत्रों की मृत्यु सुनकर सगर राजा उपदेश और मोह से व्याप्त हो गए । सगर चक्री के हृदय में जैसा स्वाभाविक महान् धैर्य था उसी प्रकार पुत्रों को मृत्यु का संवाद सुनकर मोह उत्पन्न हो गया । एक म्यान में दो तलवारों की तरह, एक स्तम्भ में दो हस्तियों की तरह राजा के मन में बोध और
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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