SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [153 हूं। आप मुझे कहीं से भी मंगलाग्नि मँगवा दें। जिससे देवी मेरे पुत्र को जीवित कर दे। पुत्र-मृत्यु के कारण ही मैं अत्यन्त दुःखी (श्लोक ११०-११५) राजा संसार के दुःखों को जानते थे फिर भी करुणावश ब्राह्मण के दु.ख से दुःखित हुए। कुछ क्षरण कुछ सोचकर बोलेइस पृथ्वी पर पर्वत श्रेष्ठ मेरु की तरह मेरा घर ही श्रेष्ठ है; किन्तु इस घर में भी मेरुपर्वत के दण्ड की तरह अपनी भुजाओं से इस पृथ्वी को छत्र-सा करने में सक्षम चौसठ इन्द्रों के मुकुट से जिसके चरण-कमलों की नख-पंक्तियां उद्भासित होती थीं वे ऋषभदेव स्वामी भी कालयोग से मृत्यु को प्राप्त हो गए। उनके ज्येष्ठ पुत्र राजा भरत जो चक्रवतियों में प्रथम थे, सुरासुर सानन्द जिनकी प्राज्ञा का पालन करते थे, जो सौधर्मेन्द्र के साथ असिन पर बैठते थे, प्रायू शेष होने पर इस नर पर्याय को त्यागकर वे भी चले गए। उनके छोटे भाई बाहुबली जो भुज पराक्रम वालों में स्वयंभू-रमण समुद्र की तरह धुरीन कहलाते थे एवं दीक्षा ग्रहण के पश्चात् ध्यानमग्न होने पर भैंस, हाथी, अष्टापद प्रादि पशु जिनकी देह से अपनी देह रगड़ कर खुजलाते थे, जो अकम्पित वज्रदण्डी की तरह एक वर्ष प्रतिभा धारण किए हुए थे, वे भी आयु समाप्त होने पर एक क्षण भी जीवित नहीं रहे। भरत चक्रवर्ती के पराक्रमी पुत्र थे आदित्ययशा । उनका पराक्रम आदित्य से कम नहीं था। इनके पुत्र महायशा हुए जिनका यशोगान दिग-दिगन्तों में उदगीत होता और जो पराक्रमियों के शिरोमरिग थे। इनके पुत्र हुए अतिवल । इन्द्र की भाँति अखण्ड पृथ्वी पर इनका शासन था। इनके पुत्र थे बलभद्र । इन्होंने अपने बल से सारे जगत् को वशीभूत कर लिया था जो कि तेज में सूर्य के समान थे। इनके पुत्र हुए बलवीर्य । वे महापराक्रमी थे। शौर्य और धैर्यधारियों में मुख्य और राजाओं में अग्रणी थे। इनके पुत्र हुए कत्तिवीर्य। ये भी कीत्ति और वीर्य के लिए प्रख्यात थे। एक दीप से जिस प्रकार अन्य दीप प्रज्वलित हो जाता है उसी प्रकार वे उज्ज्वलकारी थे। इनके पुत्र जलवीर्य हुए जो हाथियों में गंधहस्ती की तरह और प्रायुधों में वज्रदण्ड की तरह मुख्य थे और जिनका पराक्रम कोई रोक नहीं सकता था। इनके पुत्र दण्डवीर्य हुए । वे तो मानो द्वितीय यमराज ही हों ऐसी अखण्ड शक्ति सम्पन्न और उद्दण्ड भुजदण्ड युक्त थे । वे
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy