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________________ [145 होने वाली ध्वनि ऐसी प्रतीत हो रही थी मानो जोर-जोर से बाजा बजाया जा रहा है। इस भाँति स्व-जल के वेग से दण्ड द्वारा बनाए गए पृथ्वी के मार्ग को दुगुना विस्तृत करते हुए गंगा अष्टापद के चारों ओर बनाई परिखा के निकट पाई और उसी प्रकार गिरने लगी जिस प्रकार समुद्र में गिरती है। पाताल के तुल्य भयंकर हजार योजन गहरी परिखा को उसने भरना प्रारम्भ किया। जह न ने अष्टापद की परिखा को भरने के लिए गंगा का प्रानयन किया था इसलिए गंगा का एक और नाम जाह्नवी पड़ा। जब परिखा जल से भर गई तब वह जल नागकुमार के आवासों पर धारायन्त्र की भांति गिरने लगा। विलों की तरह नागकुमारों के आवास जलपूर्ण हो गए। इससे प्रत्येक दिशा के नागकुमार व्याकुल हो उठे, फूत्कार करने लगे और दुःखी हो गए। नागलोक की व्याकुलता से नागराज ज्वलनप्रभ फिर क्रोधान्वित हुए । अंकुशाहत हस्ती की तरह उनकी प्राकृति भयंकर हो गई । वे बोले-सगर-पुत्र पिता के वैभव से दुर्मद हो गए हैं अतः ये क्षमा के अयोग्य हैं, गर्दभ की भाँति ये दण्डनीय हैं। हम लोगों के प्रावासों को नष्ट करने का उनका एक अपराध तो मैंने क्षमा कर दिया, उसके लिए कोई दण्ड नहीं दिया। फलतः उन्होंने पुनः अपराध किया। अब मैं इन्हें वही दण्ड दूंगा जो तस्करों को रक्षकगण देते हैं । (श्लोक १५७-१७३) अत्यन्त क्रोध से गरजते हुए असमय में कालाग्नि के समान अत्यन्त दीप्ति से दारुण और बड़वानल जैसे समुद्र को सुखा डालने की इच्छा करता है उसी भाँति जगत् को सुखा देने की इच्छा से वे पृथ्वी से बाहर निकले और वज्रानल-से उच्च-ज्वाला सम्पन्न वे नागकुमारों सहित रसातल से बाहर आकर सगरपुत्रों के पास पहुंचे। फिर दृष्टिविष सर्यों के राजा ने क्रोधपूर्ण दृष्टि से सगरपुत्रों को देखा। इससे अग्नि में जिस प्रकार घास का पुलिन्दा जलकर राख हो जाता है उसी प्रकार सभी सगरपुत्र जलकर भस्म हो गए। उसी समय लोक में ऐसा हाहाकार मचा जिससे प्राकाश और पृथ्वी एकबारगी ही भर उठे। कारण, अपराधियों के दण्ड पाने पर भी लोगों के मन में दया उत्पन्न होती है। नागकुमार सगर राजा के साठ हजार पुत्रों को विनष्ट कर सन्ध्या को सूर्य जिस प्रकार अस्त होता है वैसे वे पुनः नागलोक में चले गए । (श्लोक १७३-१७८) पञ्चम सर्ग समाप्त
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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