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________________ 144] है; किन्तु दण्डरत्नधारी हमने आपके भवनों को विनष्ट करने की इच्छा से पृथ्वी को नहीं खोदा है। हमने तो अष्टापद पर्वत की सुरक्षा के लिए चारों ओर परिखा के निर्माण के उद्देश्य से पृथ्वी खोदी है। हमारे वंश के पूर्वज भरत चक्रवर्ती ने रत्नमय चैत्य और समस्त तीर्थङ्करों की रत्नमय सुन्दर प्रतिमा निर्मित करवाई है। भविष्य में काल-दोष से लोग इसकी क्षति न करे इसलिए हमने यह कार्य किया है। आपके स्थान तो बहुत नीचे हैं अतः आपके भवनों के भग्न होने की तो हमने आशंका भी नहीं की थी। फिर भी ऐसा हुआ इसके लिए तो दण्ड रत्न की अमोध शक्ति ही अपराधी है। इसलिए अर्हतों की भक्ति के वशीभूत होकर हमने बिना विचारे जो कार्य किया है उसके लिए आप हमें क्षमा करें। अब आगे से हम ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे। (श्लोक १४८-१५४) जह नुकुमार के इस निवेदन पर नागराज शान्त हो गए। कहा भी गया है-'सत्पुरुषों की कोपाग्नि को शान्त करने में साम्यवचन जल का काम करता है। अतः इस विषय में अब अधिक कुछ न कहकर नागराज उसी प्रकार नागलोक में प्रवेश कर गए जिस प्रकार सिंह स्व-गुफा में प्रवेश करता है। (श्लोक १५५-१५६) नागराज के जाने के पश्चात् जह नुकुमार ने स्व-अनुजों से कहा-हमने अष्टापद के चारों ओर परिखा तो खुदवाई है; किन्तु पाताल-सी गहरी परिखा बिना जल के बुद्धिहीन मनुष्याकृति की तरह शोभा नहीं पाती। फिर यह परिखा कभी वापस मिट्टी से भी भर सकती है। कारण, कालान्तर में बड़े-बड़े खड्डे भी स्थल के समान हो जाते हैं। इसलिए इस परिखा को जल से भरना ही उचित होगा; किन्तु यह कार्य उच्च तरंगयुक्त गङ्गा के अलावा अन्य किसी के द्वारा नहीं हो सकता । यह सुनकर उनके भाइयों ने कहा-आप जो कह रहे हैं वह उचित है तब जह नु ने मानो द्वितीय यम ही हो इस प्रकार-दण्डरत्न हाथ में लिया। उस दण्डरत्न से गङ्गा का तट इस प्रकार तोड़ डाला जिस प्रकार इन्द्र वज्र से पर्वतशिखर को विदीर्ण कर देता है। तट टूटते ही गङ्गा उसी पथ पर प्रवाहित होने लगी। कारण, सरल पुरुष की तरह जल को भी जिस दिशा में ले जाया जाए उधर ही प्रवाहित होने लगता हैं। उस समय उच्छलित तरंगों से गंगा ऐसी लग रही थी मानो वह पर्वत-शिखर को ऊपर उठा रही है और तट पर जल टकराने से
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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