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________________ [143 नवीन धर्म स्थान निर्माण करवाने की अपेक्षा पुराने धर्म स्थान की रक्षा ही अधिक उपयुक्त है । (श्लोक १२७-१३२) यह सुनकर उनके सभी छोटे भाइयों ने चैत्य की रक्षा के लिए उसके चारों ओर परिखा खुदवाने की इच्छा से दण्डरत्न को उठाया । तदुपरान्त सूर्य से तेजस्वी जह.नु ने अपने भाइयों के साथ नगर के चारों ओर जैसी परिखा रहती है वैसी ही परिखा अष्टापद के चारों ओर खनन करने के लिए दण्डरत्न से पृथ्वी को खोदने लगे। उनकी आज्ञा से दण्डरत्न ने एक हजार योजन गहरी परिखा खोद दी। इससे वहां अवस्थित नागकुमार देवों के प्रासाद टूट कर गिरने लगे। अपने प्रासादों को गिरते देख समुद्र-मन्थन के समय जिस प्रकार जल-जन्तु क्षुब्ध हो उठे थे उसी प्रकार समस्त नागलोक क्षुब्ध हो उठा । मानो परचक्र पाया हो, अग्नि प्रज्वलित हो गई हो, महाप्रभञ्जन प्रवाहित हो गया हो इस भाँति नागकुमार दु:खित होकर इधर-उधर दौड़ने लगे। अपने नागलोक को इस प्रकार आकुल देखकर नागकुमारों के राजा ज्वलनप्रभ क्रोध से अग्नि की भाँति प्रज्वलित हो उठे । पृथ्वी को खोदा गया है यह जानकर वे देखने के लिए नागलोक से बाहर आए और सगर चक्री के पुत्रों के पास गए । तरंगोत्थित समुद्र की तरह चढ़ी हुई भकुटि से वे भयंकर लग रहे थे । ऊोत्थित ज्वालामुखी अग्नि की तरह क्रोध से उनके प्रोठ काँप रहे थे । उत्तप्त तोमर श्रणी की तरह वे क्रुद्ध दष्टि निक्षेप कर रहे थे। वज्राग्नि की धौंकनी की तरह अपनी नासिका को वे फुला रहे थे। यमराज की तरह क्रुद्ध और प्रलयकालीन सूर्य की तरह जिनकी अोर नहीं देखा जा सकता ऐसे नागपति सगरपुत्रों को बोले: (श्लोक १३३-१४४) स्वयं को पराक्रमी जानने वाले तुम लोग अति दुर्मद हो । किला प्राप्त होने पर भील जो करते हैं उसी प्रकार दण्डरत्न को प्राप्त कर तुम लोगों ने यह क्या करना प्रारम्भ किया है ? अविचारपूर्वक कार्य करने वाले तुम लोगों ने भुवनपतियों के शाश्वत भवनों को हानि पहुँचाई है । भगवान् अजितनाथ के भाई के पुत्र होकर तुम लोगों ने पिशाच जैसा दारुण कर्म क्यों प्रारम्भ किया है ? (श्लोक १४५-१४७) तब जह नु बोले-हे नागराज, हमारे द्वारा प्रापके भवन भग्न हुए उससे पीड़ित होकर मापने जो कुछ कहा है वह उचित ही
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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