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________________ 142] करने वाली स्वामी की प्रतिमा के सम्मुख पट्ट पर अक्षत से अष्टमङ्गल की रचना की । उन्होंने सूर्य मण्डल से देदीप्यमान प्रारती थाल में कर्पूर रखकर पूजा के पश्चात् प्रारती की और करबद्ध होकर शक्रस्तव से वन्दना कर भगवान् ऋषभादि की इस प्रकार स्तुति की : ( श्लोक १०६-११९) संसार रूपी समुद्र में प्राप । आप हमें पवित्र करें । हे भगवन्, इस अपार और घोर जहाज तुल्य हैं और मोक्ष के कारणभूत हैं स्यादवाद रूपी प्रासाद के निर्माण के लिए नय और प्रमाण के सत्राधारत्व धारणकारी हे प्रभो, हम प्रापको नमस्कार करते हैं । योजन पर्यन्त विस्तृत वाणी रूपी धारा से समस्त जगद्रूपी उद्यान को सुश्यामल करने वाले है जिनेश्वर, हम श्रापको प्रणाम करते हैं। हम सामान्य जन भी आपके दर्शन से पञ्चम आरे के व्यक्ति की तरह परम फल को प्राप्त हुए हैं। गर्भ, जन्म, दीक्षा, ज्ञान और मुक्ति रूप आपके पञ्च - कल्याणकों के समय नारकी जीवों को भी सुखप्रदानकारी हे स्वामी, हम प्रापकी वन्दना करते हैं । मेघ, वायु, चन्द्र एवं सूर्य की तरह समदृष्टि सम्पन्न आप हमारे लिए कल्याण के कारण बनें । अष्टापद पर निवास करने वाले पक्षी भी धन्य हैं जो कि नित्य श्रापका दर्शन करते हैं । अनेक क्षणों तक हमने आपका दर्शन-पूजन किया इससे हमारा जीवन धन्य और कृतार्थ हो गया है । (श्लोक १२०-१२६) इस प्रकार स्तुति कर पुनः श्रर्हतों को नमस्कार कर सगरपुत्र सानन्द मन्दिर से बाहर निकले। फिर उन्होंने भरत चक्रवर्ती के भ्रातानों के पवित्र स्तूपों की वन्दना की । राजा सगर के ज्येष्ठ पुत्र जह, नुकुमार ने अपने अनुजों से कहा- मुझे लगता है प्रष्टापद सा उत्तम अन्य कोई स्थान नहीं है । अतः इस चैत्य के अनुरूप एक और चैत्य का निर्माण करें । यद्यपिं भरत चक्रवर्ती भरत क्षेत्र का परित्याग कर गए हैं फिर भी इस पर्वत पर जो भरत क्षेत्र का सारभूत चैत्य है उसके द्वारा वे आज भी अधिकारारूढ़ हैं । कुछ देर चुप रहने के पश्चात् वे फिर बोले- नवीन चैत्य निर्माण को अपेक्षा भविष्य में जिसके विलुप्त हो जाने की सम्भावना है उस चैत्य की यदि हम रक्षा करें तो लगेगा कि इस चैत्य को हमने बनवाया है । कारण, जब दुःखदकाल आएगा तब मनुष्य अर्थलोलुप, सत्वहीन और कृत्याकृत्य विचारहीन होगा । इसलिए
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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