________________
[131
नीचे उतरे । क्लान्त और त्रस्त अश्व भी जमीन पर गिर पड़ा। चक्री वहां से पैदल ही रवाना हुए। थोड़ी दूर जाने के पश्चात् ही उन्हें एक सरोवर मिला। सूर्य-किरण से तप्त धरती पर वह चन्द्रिका-सा लग रहा था। सगर चक्रवर्ती ने क्लान्ति दूर करने के लिए वन्य हस्ती की तरह सरोवर में स्नान किया और स्वादिष्ट, स्वच्छ, कमल-सुगन्ध से सुवासित शीतल जल का पान किया। जब वे सरोवर से बाहर निकल कर तट पर आ बैठे थे तभी एक जलदेवी-सी युवती को देखा । नवीन प्रस्फुटित कमल-सा उसका मुख था, नील कमल-सी आँखें। उसकी देह पर सौन्दर्य जल तरंगित हो रहा था। युग्म चक्रवाक पक्षी-से दोनों स्तन और वर्तुलित स्वर्ण कमल-से हाथ-पैरों के कारण वह अत्यन्त सुन्दर लग रही थी। शरीरधारिणी सरोवर लक्ष्मी-सी उस स्त्री को देखकर चक्री विचार करने लगे-यह क्या अप्सरा, व्यन्तरी, नागकन्या या विद्याधरी है ? कारण, सामान्य स्त्री इतनी सुन्दर नहीं होती। अमृत-वष्टि के सहोदर तुल्य इसका रूप हृदय को जितना प्रानन्द दे रहा है उतना सरोवर का जल भी नहीं देता । (श्लोक ३०३-३१५)
उसी समय कमलनयनी उस स्त्री ने भी अनुराग भरी दृष्टि से चक्री को देखा। उस समय उसकी स्थिति सूख गई कमलिनी-सी, कामदेव द्वारा पीड़िता-सी हो गई। अतः उसकी सखियां जैसे-तैसे उसे निवास स्थान पर ले गयीं। महाराज सगर भी कामातुर होकर धीरे-धीरे सरोवर-तट पर विचरने लगे। उसी समय एक कंचुकी सगर चक्री के सम्मुख प्राई और हाथ जोड़कर बोलने लगी-हे स्वामी, इस भरत क्षेत्र के वैताढय पर्वत पर सम्पत्ति-सी प्रिय ऐसी गगनवल्लभ नामक एक नगरी है। वहां सुलोचन नामक एक प्रसिद्ध विद्याधरपति थे। वे इस भांति वहां रहते थे जैसे अलकापुरी में कुबेर रहते हैं । उनके सहस्रनयन नामक एक नीतिवान पुत्र है और निखिल नारियों में शिरोमरिण-सी सुकेशा नामक एक कन्या है । इस कन्या ने जब जन्म लिया था ज्योतिषियों ने तभी कहा था-यह कन्या चक्रवर्ती की पट्टरानी और स्त्री-रत्न होगी। रथनुपुर के राजा पूर्णमेघ ने उससे विवाह करने की इच्छा कितनी ही बार व्यक्त की; किन्तु उसके पिता ने पूर्णमेघ की बात स्वीकार नहीं की। तब जबर्दस्ती उसे अपहरण कर ले जाने की इच्छा से गरजते हुए वह युद्ध करने पाया। दीर्घ भुजाओं वाले