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________________ 132] पूर्णमेघ ने बहुत दिनों तक युद्ध करने के पश्चात् कभी नहीं टूटने वाली निद्रा में सुलोचन को निद्रित कर दिया। तब सहस्रनयन धन की तरह अपनी बहन को लेकर यहां आ गया। वह अभी सपरिवार यहीं रहता है। हे महात्मन् ! सरोवर में क्रीड़ा करते समय उस सुकेशा ने आपको देखा है एवं जब से आपको देखा है तभी से कामदेव ने वेदनामय विकार से उसे दण्डित किया है । मानो ग्रीष्म द्वारा पीड़ित हो इस प्रकार श्वेद जल से उसकी देह भर गई है । डर गई हो इस प्रकार उसका शरीर कांपता है। मानो रोगाक्रान्त हो गई हो इस भांति शरीर का रंग ही पलट गया है। जैसे शोक में निमग्न हो इस भांति उसकी आंखों से अश्रु बह रहे हैं । योगिनीसी वह किसी ध्यान में निमग्न है। हे जगत्त्राता, पापको देखकर क्षणमात्र में उसकी अवस्था विचित्र प्रकार की हो गई है । अतः वह मृत्यु की शरण ले उसके पूर्व ही आप चलकर उसकी रक्षा करें। (श्लोक ३१६-३३०) अन्तःपुराध्यक्षा स्त्री जब यह कह रही थी उसी समय सहस्रनयन भी श्राकाश-पथ से वहां आया और चक्री को नमस्कार किया । वह चक्री को सादर स्व-निवास स्थान पर ले गया और उसने स्त्री-रत्न अपनी बहन सुकेशा को दान कर चक्री को सन्तुष्ट किया । फिर सहस्रनयन और चक्री विमान में बैठकर वैताढ्य पर्वत स्थित गगनवल्लभ नगर में गए। वहां चक्री ने सहस्रनयन को उसके पिता के राज्य पर अभिषिक्त कर विद्याधरों का अधिपति बना दिया। (श्लोक ३३१-३३४) तदुपरान्त इन्द्र-से पराक्रमी सगर चक्रवर्ती स्त्री-रत्न को लेकर अयोध्या की अपनी छावनी में लौट आए। वहां उन्होंने विनीता नगरी के उद्देश्य से अष्टम तप किया और विधि अनुसार पौषधशाला में जाकर पौषधव्रत ग्रहण कर लिया। अष्टम तप के अन्त में वे पौषधशाला से बाहर आए और सपरिवार पारणा किया । फिर वासकसज्जिका नायिका की तरह अयोध्यापुरी में प्रवेश किया। वहां स्थान-स्थान पर तोरण बँधे हुए थे। उससे वह भकुटि युक्त स्त्री-सी लग रही थी। विपणियों की शोभा के लिए बँधी पताकाएँ पवन द्वारा आन्दोलित होकर ऐसी लग रही थीं मानो नृत्य के लिए हाथ ऊँचे किए हों। धूपदानियों से निकलने वाला धुप्रां पंक्ति रूप धारण कर ऐसा लग रहा था मानो वह अपनी देह
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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