SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 130] महाराज सगर चक्रवर्ती चौदह रत्नों के स्वामी थे, नवनिधि के ईश्वर । बत्तीस हजार राजा उनकी सेवा करते थे । बत्तीस हजार राजकन्याएँ एवं बत्तीस हजार अन्य स्त्रियाँ कुल चौसठ हजार रानियाँ उनके अन्तःपुर में थीं । वे बत्तीस हजार देश के स्वामी थे, बत्तीस हजार बड़े-बड़े नगरों पर उनका अधिकार था । निन्यानवे हजार द्रोणमुख के वे प्रभु थे, अड़तालीस हजार पत्तनों के अधिकारी थे । चौबीस हजार कर्वट और मण्डव के अधिपति, चौदह हजार संवाहक के स्वामी, सोलह हजार खेटक के रक्षक और इकत्तीस हजार आकर के नियन्ता थे । उञ्चास कुराज्यों के वे नायक थे । छप्पन अन्तरोदक के पालक, छियानवे करोड़ गांवों के स्वामी थे । उनके छियानवे करोड़ पदातिक, चौरासी लाख हस्ती, चौरासी लाख श्रश्व, चौरासी लाख रथ थे, जिनसे वे पृथ्वी को आच्छादित किए थे। ऐसे महाऋद्धि सम्पन्न चक्रवर्ती चक्ररत्न का अनुसरण करते हुए द्वीपान्तर से जिस भाँति जहाज प्रत्यावर्तन करता है उसी भांति उन्होंने प्रत्यावर्तन किया । ( श्लोक २८८ - २९७) राह में ग्रामपति, दुर्गपाल औौर मण्डलेश्वरों ने द्वितीया के चन्द्र की तरह उनकी भक्ति की । अभ्यर्थनकारी पुरुष की तरह श्राकाश में उड़ी हुई धल ने दूर से ही उनके आगमन की सूचना दी । मानो स्पर्धा से विस्तारित हो रहा हो इस प्रकार अश्वों का 1 श्वार, हस्तियों का वृहंतिनाद, चारणों का आशीर्वाद और वाद्ययन्त्रों के शब्दों ने चाकाश को वधिर कर डाला । इस भाँति सर्वदा सुखपूर्वक एक-एक योजन गमनकारी सगर राजा मानो अपनी प्रिय पत्नी के निकट जा रहे हों इस प्रकार प्रयोध्यानगरी के निकट पहुँचे । पराक्रम में पर्वत तुल्य राजा ने विनीता नगरी के समीप समुद्र की तरह छावनी डाली । ( श्लोक २९८ - ३०२ ) के लिए वायु की भांति गतिशील अश्व पर चढ़े। वे उस चतुर अश्व को लगे । जब वे उसे प्रति वेग से दौड़ा रहे हो इस प्रकार लगाम की उपेक्षा कर वह हुआ । मानो अश्व रूपी राक्षस हो ऐसे उड़कर वह राजा को एक महारण्य में ले लगाम खींचकर और हाथों के जोर से उसे खड़ा कर कूदकर एक दिन समस्त कलानों के भण्डार सगर चक्रवर्ती अश्व और विपरीत शिक्षा सम्पन्न उत्तरोत्तर वेग से दौड़ाने थे उस समय भूत ने पकड़ा अश्व प्रकाश में उत्पतित समय की भांति तेजी से गया । क्रोध में भरे चक्री
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy