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________________ [129 अलङ्कार, वस्त्र, हस्ती और अश्व चक्री को उपहार में दिए और उनकी सेवा स्वीकार की । महाराज सगर ने विद्याधरों को सम्मानित कर उन्हें विदा दी । जो बड़े हैं वे 'मैं आपका सेवक हूं' सुनकर ही प्रसन्न हो जाते हैं । ( श्लोक २७० - २७२ ) चक्री की श्राज्ञा से सेनापति ने तमिस्रा गुहा की तरह अष्टम तप कर खण्ड प्रपाता गुहा का द्वार खोला । फिर राजा सगर हस्ती पर चढ़कर जिस प्रकार मेरुशिखर पर सूर्य रहता है उसी प्रकार हस्ती के दक्षिणी कुम्भस्थल पर मरिण रखकर उस गुफा में प्रविष्ट हुए। पूर्व की भांति ही गुहा के दोनों प्रोर कांकिणीरत्न का मण्डल बनाया और उन्मग्ना एवं निमग्ना नामक नदी को पार कर अपने हाथों से खोले दक्षिणी गुहा द्वार से राजा सगर नदी प्रवाह की भाँति बाहर आए । ( श्लोक २७३ - २७६) फिर गङ्गा के पूर्वी तट पर छावनी डाली । वहाँ नवनिधि का ध्यान कर अष्टम तप किया । तप के अन्त में नैसर्प, पाण्डु, पिंगल, सर्वरत्नक, महापद्म, काल, महाकाल, मानव और शङ्ख इन नौ नामों की नवनिधि चक्रवर्ती के निकट प्रकट हुई । इन प्रत्येक निधियों के साथ हजार-हजार देव रहते हैं । वे चक्री से बोले - हे महाभाग, हम गङ्गा के मुहाने पर मगध तीर्थ पर वास करते हैं; किन्तु आपके महापुण्य से वशीभूत होकर हम आपके पास आए हैं । आप इच्छानुसार हमारा उपभोग करें या किसी को दें । हो सकता है क्षीर समुद्र समाप्त हो जाए; किन्तु हमारा क्षय कभी नहीं होता । हे देव, नौ हजार सेवकों से रक्षित बारह योजन विस्तार युक्त और नौ योजन प्रशस्त विशिष्ट आठ चक्र पर स्थित हम आपके सेवक की तरह पृथ्वी पर साथ-साथ रहेंगे । ( श्लोक २७७ - २८३) उनका कथन स्वीकृत कर चक्री ने पाररणा किया। अतिथि की भाँति उनका प्रष्टाह्निका महोत्सव किया । ( श्लोक २८४ ) सगर राजा की आज्ञा से नदी के पूर्व दिशा में रहे निष्कूट को भी सेनापति ने ग्राम की तरह जीत लिया । गङ्गा और सिन्धु नदी के दोनों ओर चार निष्कूट और उनमें दो खण्डों में स्थित भरत क्षेत्र को षट् खण्ड कहा जाता है । इन छह खण्डों को चक्री ने बत्तीस हजार वर्षों में धीरे-धीरे सुखपूर्वक जय कर लिया । शक्तिमान पुरुषों की प्रवृत्ति उत्सुकतारहित लीलापूर्वक ही होती है । ( श्लोक २८५ - २८७ )
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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