SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 128] उन्हें विदा कर चक्री रथ- प्रत्यावृत्त कर ऋषभकूट पर्वत पर पहुंचे। वहां भी उन्होंने पर्वत पर रथ के अग्रभाग से तीन बार श्राघात किया और अश्व को संयत कर पर्वत के पूर्व भाग में कांकरणी रत्न से लिखा- मैं इस अवसर्पिणी का द्वितीय चक्रवर्ती हूं। फिर वहां से रथ द्वारा छावनी लौट आए और अष्टम तप का पारना किया। जिनकी दिग्विजय की अभिलाषा पूर्ण हुई ऐसे सगर राजा ने महा धूमधाम से हिमाचलकुमार के लिए प्रष्टाह्निका महोत्सव किया। ( श्लोक २५५ - २५८) वहां से रथ के पीछे चलते हुए उत्तर-पूर्व के पथ पर चक्री सुखपूर्वक गङ्गा के सम्मुख उपस्थित हुए। वहां गङ्गा किनारे छावनी डालकर एवं गङ्गादेवी के उद्देश्य से अष्टम भक्त की तपस्या की । गङ्गादेवी ने भी सिन्धुदेवी की भांति अष्टम तप के अनन्तर श्रासन कम्पित होने से चक्रवर्ती आए हैं यह जानकर आकाश में स्थित रहकर महाराज को रत्नों के एक हजार प्राठ कुम्भ, स्वर्णमाणिक्य आदि द्रव्य और रत्नों के दो सिंहासन उपहार में दिए । सगर राजा ने गङ्गा देवी को विदा कर अष्टम तप का पारणा किया और आनन्दपूर्वक देवी की कृपा के लिए उनका श्रष्टाह्निका उत्सव किया । ( श्लोक २५९ - २६३ ) वहां से चकू प्रदर्शित पथ से चलते हुए चकी दक्षिण दिशा के खण्डप्रपाता गुहा की प्रोर गए। वहां पहुँचकर खण्डप्रपाता के निकट छावनी डाली एवं नाट्यमाल देव को स्मरण कर अष्टम तप किया । श्रष्टम तप के अन्त में नाट्ययाल देव स्व-प्रासन कम्पित होने से चक्रवर्ती का श्रागमन अवगत कर ग्रामपति की भांति उपहार लेकर उनके निकट गए । उन्होंने नाना प्रकार के अलङ्कार चक्रवर्ती को भेंट किए और माण्डलिक राजा की तरह नम्र होकर उनकी सेवा स्वीकृत की । उन्हें विदा देने के पश्चात् चकी ने पारणा किया और प्रफुल्लित हृदय से उनका अष्टाह्निका महोत्सव किया । मानो यह उपकार का प्रत्युपकार था । (श्लोक २६४-२६८) अर्द्धसैन्य लेकर तत्पश्चात् चकी की आज्ञा से सेनापति ने सिन्धु की भाँति गंगा के पूर्व भाग को जय किया । ( श्लोक २६९ ) इसके बाद चकी ने वैताढ्य पर्वत की दोनों श्रेणियों के विद्याधरों के राजानों को शीघ्र ही जय कर लिया। उन्होंने रत्न
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy