SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [123 प्राप्त होती है । नदी जिस प्रकार समुद्र में मिलने आती है उसी प्रकार दूर-दूर से आने वाले राजाओं द्वारा सेवित होकर चक्रवर्ती वहीं बहुत दिनों तक छावनी डाले अवस्थित रहे । ( श्लोक १७४ - १७६) एक बार उन्होंने तमिस्रा गुहा का दरवाजा खोलने के लिए दण्डरत्न रूपी चाबी को धारण करने वाले सेनापति को श्राज्ञा दी । उन्होंने तमिस्रा गुहा के निकट जाकर उसके अधिष्ठायक कृतमाल देव को मन ही मन स्मरण कर अष्टम तप किया। कारण, देव तपस्या द्वारा पाए जाते हैं । अष्टम तप के पश्चात् उन्होंने स्नान विलेपन कर शुद्ध वस्त्र पहन कर धूपदानी हाथ में लेकर जैसे देवता के सम्मुख जाते हैं वैसे ही वे गुफा के द्वार के सम्मुख गए । गुफा को देखते ही उन्होंने प्रणाम किया और हाथ में दण्डरत्न लेकर दरवाजे के पास द्वारपाल की तरह खड़े रहे । फिर वहाँ प्रष्टाह्निका उत्सव और अष्ट मांगलिक चित्रित कर सेनापति ने दण्डरत्न द्वारा गुहाद्वार पर श्राघात किया । इससे कड़कड़ शब्द करता हुआ सूखी हुई फली की तरह वह दरवाजा खुल गया । कड़कड़ शब्द की आवाज सुनकर चक्रवर्ती दरवाजा खुलने की बात जान गए थे फिर भी पुनरुक्ति की तरह सेनापति ने यह बात चक्री को निबेदन की । चक्रवर्ती हस्ती पर आरोहण कर चतुरङ्गिणी सेना सहित मानो वे दिक्पाल हों इस प्रकार गुफा के निकट पहुँचे । उन्होंने हस्ती रत्न के दाहिनी ओर के कुम्भ-स्थल पर दीपदान पर रखे दीपक सा प्रकाशमान मणिरत्न रखा और अस्खलित गति सम्पन्न केशरी सिंह की तरह चक्र के पीछे-पीछे पचास योजन विस्तार युक्त तमिस्रा गुहा की दोनों ओर की दीवार पर गो- मूत्रिका के आकार में पाँच सौ धनुष विस्तार वाले अन्धकार को नाश करने वाले कां किरणीरत्न के उनचालीस मण्डल एक-एक योजन की दूरी पर निर्मित किए । उन्मुक्त गुहाद्वार और कांकिणीरत्न के मण्डल जब तक चक्रवर्ती जीवित रहते हैं तब तक इसी प्रकार रहते हैं । वह मण्डल मनुष्योत्तर के चारों ओर चन्द्र-सूर्य की श्रेणी का अनुसरण करने वाले थे । इसीलिए उनके द्वारा समस्त गुहा आलोकित होती थी । तदुपरान्त चकी पूर्व दिशा की दीवार से पश्चिम दिशा की दीवार के मध्य प्रवाहित उन्मग्ना और निमग्ना नदियों के निकट आए । उन्मग्ना नदी में नामक समुद्रगामी दोनों फेंकी शिला भी बहती
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy