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________________ [113 बढ़कर उसे नमस्कार किया। कहा भी गया है-अस्त्रजीवी लोगों के लिए उनके अस्त्र ही देवता के समान है। फिर सिंहासन पर बैठकर अपनी देह के समस्त अलंकार खोल-खोलकर चक्ररत्न उत्पन्न होने का संवाद लाने वाले को दिए। तदुपरान्त जल से मङ्गल स्नान कर दिव्य वस्त्रालङ्कार धारण कर चक्र-रत्न की पूजा करने के लिए प्रस्थान किया। (श्लोक ५-११) पैदल चलकर सम्मुख जाना पूजा से भी अधिक है। किंकरों की तरह दौड़ते-गिरते-उठते राजन्यवृन्द सम्मान के लिए उनके पीछे चले। कुछ सेवक पूजा की सामग्री लिए, कुछ सेवक अपनी इच्छा से ही उनके पीछे-पीछे चले । कारण, अधिकारियों के स्वकार्य का प्रमाद भयभीत बना देता है। जिस भांति देवताओं से विमान झिलमिल करता है उसी प्रकार दिव्य चक्र से झिलमिलाते शस्त्रागार में राजा सगर पहंचे। राजा ने गगन-रत्न (सूर्य) की तरह चक्र-रत्न को देखते ही पाँचों अङ्गों से भूमि स्पर्श-पूर्वक प्रणाम किया। हाथ में रोमहस्त (मयूर पुच्छ की सम्मानी) लेकर महावत जिस प्रकार नींद से जागे हस्ती की मार्जना करता है उसी प्रकार राजा सगर ने चक्र का मार्जन किया । कुम्भ भरकर लाए जल सेविका के हाथों से लेकर उनसे देव प्रतिमा की तरह चक्र-रत्न का स्नानाभिषेक किया। फिर उसे ग्रहण करने के लिए स्व-हस्त की शोभा की तरह चन्दन का तिलक किया। विचित्र फूलों की माला से जयलक्ष्मी के पुष्प गृह की तरह चक्ररत्न की पूजा की। फिर प्रतिष्ठा के समय देव-प्रतिमा पर प्राचार्य जिस प्रकार क्षेपन करते हैं उसी प्रकार उस पर गन्ध और वासक्षेप निक्षेप किया। देवतामों के योग्य महामूल्यवान वस्त्रालङ्कारों से राजा ने स्व-देह की तरह चक्ररत्न को सजाया। पाठों दिशाओं की जयलक्ष्मी को आकृष्ट करने के लिए मानो अभिचारमण्डल हों ऐसे अष्टमङ्गल चक्र के सम्मुख चित्रित किए। उसके निकट बसन्त की तरह अच्छे सुगन्धयुक्त पञ्चवर्णीय पुष्पों का स्तवक सजाया। उसके सम्मुख कर्पूर और चन्दन का धूप दिया। इनका धुआँ ऐसा लगा मानो राजा कस्तूरी का विलेपन कर रहे हैं। तदुपरान्त सजा सगर चक्र को तीन प्रदक्षिणा देकर कुछ पीछे हटे एवं जयलक्ष्मी उत्पन्न करने के लिए समुद्र रूप चक्ररत्न को पुनः प्रणाम किया। फिर नवप्रतिष्ठित देवों के लिए किया जाने वाला अष्टाह्निका महोत्सव
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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