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________________ 108] और सर्वदा उनसे धर्म श्रवण करने लगी। जिस भांति मीठी वस्तु के संयोग से खट्टी वस्तु का खट्टापन जाता रहता है उसी प्रकार साध्वी श्री के उपदेश से सुलक्षणा का मिथ्यात्व जाता रहा । कृष्णपक्ष के बीत जाने पर रात्रि जिस प्रकार निर्मल हो जाती है उसी प्रकार उसने निर्मल सम्यक्त्व को प्राप्त किया। वैद्य जिस प्रकार शरीर में उत्पन्न रोग को जानता है उसी भांति वह जीव-प्रजीव प्रादि पदार्थ को यथोचित जानने लगी । समुद्र पार करने के लिए यात्री जिस प्रकार योग्य जहाज पर चढ़ता है उसी प्रकार संसार पार कराने में समर्थ जैन धर्म को उसने अंगीकार कर लिया। उसे विषय से विरक्ति पैदा हो गयी, कषाय उपशान्त हो गया और अविच्छिन्न जन्म-मरण के प्रवाह से वह व्याकुल हो उठी। रसपूर्ण कथाओं में जागरूक होकर लोग जिस प्रकार रात्रि व्यतीत करते हैं उसी प्रकार उसने साध्वी श्री की सेवा-शुश्रूषा में वर्षाकाल व्यतीत किया। उसे अणुव्रत ग्रहण करवाकर साध्वी श्री विहार कर अन्यत्र चली गयीं। कहा भी गया है- वर्षाकाल बीत जाने पर कोई भी संयमी साधु एक स्थान पर नहीं रहता। - .. . (श्लोक ८६१-८८०) इसके कुछ दिनों पश्चात् ही शुद्धभट भी विदेश से खूब धन कमाकर प्रेयसी के प्रेम से प्राकृष्ट होकर पारावत की तरह घर लौट आया। पाते ही उसने पूछा-प्रिये, कमलिनी जिस प्रकार हिम सहन नहीं कर सकती उसी प्रकार मेरा सामान्य-सा वियोग भी सहन नहीं करने वाली तुमने इतने दीर्घकाल का वियोग कैसे सहा? (श्लोक ८८१-८८२) ___ सुलक्षणा ने प्रत्युत्तर दिया-हे जीवितेश्वर, मरुस्थल में हंसिनी, अल्प जल में मछली, राह के मुख में चन्द्रलेखा और दावानल में हरिण जिस प्रकार महासंकट में पड़ जाता है उसी प्रकार आपके वियोग में मैं भी मृत्यु के द्वार पर जा पहुंची थी। उस समय अन्धकार में प्रदीप की तरह, समुद्र में जहाज की तरह, मरुस्थल में वर्षा की तरह दया को सागर विपुला नामक एक साध्वी श्री यहाँ पायीं। उन्हें देखकर आपके विरह का समस्त दुःख दूर हो गया और मनुष्य जन्म के फल-सा सम्यक्त्व मैंने प्राप्त किया। (श्लोक ६८३-८८७)
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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