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________________ [103 उत्पत्ति अन्तिम ग्रेवेयक तक है। पूर्ण चतुर्दशपूर्वी मुनियों की उत्पत्ति ब्रह्मलोक से सर्वार्थसिद्धि विमान तक है। सद्वतधारी साधु और श्रावकों की उत्पत्ति कम से कम सौधर्म देवलोक की है। भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और ईशान देवलोक तक देवता अपने-अपने भवनों में रहने वाली देवियों के साथ विषय सम्बधी भोग करते हैं। वे संक्लिष्ट (दुःखदायी) कर्म और तीव्र राग सम्पन्न होने से मनुष्यों की तरह काम भोग में लीन रहते हैं और देवांगनाओं की समस्त अंग सम्बन्धीय प्रीति प्राप्त करते हैं। इसके बाद वाले दो देवलोकों में स्पर्शमात्र से, दो में रूप देखने से, दो में शब्द सुनकर और पानत इत्यादि चार देवलोकों के मन में मात्र विचार करने से विषय धारणकारी हो जाते हैं। इस प्रकार विचार से विषयरस पान करने वाले देवताओं से अनन्त सुख प्राप्त करने वाले देव ग्रंवेयकादि में है जिनके मन विषय विचारों से सर्वथा रहित (श्लोक ७८९-९६) इस प्रकार अधोलोक, तिर्यक्लोक, ऊर्ध्वलोक में विभाजित समग्र लोक के मध्यभाग में चौदह राजलोक प्रमाण ऊर्ध्व अध:लम्बी त्रस नाड़ी है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई एक राज लोक प्रमाण है। इस त्रस नाड़ी में स्थावर और त्रस दो प्रकार के जीव हैं। इसके बाहर केवल स्थावर ही हैं। इस प्रकार पूरा विस्तार नीचे सात लोक प्रमाण, मध्य तिर्यक्लोक में एक राजलोक प्रमाण, ब्रह्मदेव लोक में पांच राजलोक प्रमाण और अवशेष सिद्धशिला पर्यन्त एक राजलोक प्रमाण है। अच्छी तरह से प्रतिष्ठित प्राकृति विशिष्ट इस राजलोक को न किसी ने बनाया है, ना किसी ने धारण कर रखा है। यह स्वयंसिद्ध और आश्रय रहित होकर प्राकाश में अवस्थित है। (श्लोक ७९७-८००) अशुभ ध्यान निरोध के लिए इस भांति समस्त लोक के या इसके भिन्न-भिन्न विभागों का जो बुद्धिमान विचार करता है उसको धर्म-ध्यान से सम्बन्धित क्षयोपशमादि भाव प्राप्त होता है और पीत लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या अनुक्रम से शुद्ध से शुद्धतर होती जाती है । तीव्र वैराग्य से तरंगित धर्म-ध्यान के द्वारा प्राणी स्वयं ही समझ सके ऐसा स्वसंवेद्य अतीन्दिय सुख उत्पन्न होता है। जो योगी निःसंग होकर धर्म-ध्यान करते हुए देह परित्याग करते हैं वे ग्रे वैयकादि स्वर्ग में उत्तम देव होते हैं। वहां वे महामहिमा
SR No.090514
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size16 MB
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