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________________ ८८] पूर्व रुचकाद्रि निवासिनी नन्दा, नन्दोत्तरा, आनन्दा, नन्दिवर्द्धना, विजया, वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजिता नामक प्राठ दिक्कुमारियां भी ऐसे वेगवान विमान में बैठकर वहां भाई जो कि मन की गति से भी स्पर्द्धा कर सके । उन्होंने भगवान् और माता मरुदेवी को नमस्कार कर अपना परिचय दिया एवं हाथों में दर्पण लेकर मङ्गल गीत गाती हुई पूर्व दिशा में स्थित हो गई । ( श्लोक २८७ - २८९ ) दक्षिण रुचकाद्रि निवासिनी समाहारा, सुप्रदत्ता, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीवती, शेषवती, चित्रगुप्ता और वसुन्धरा नामक आठ दिक्कुमारियां मानो ग्रानन्द ही उन्हें चलाकर ले आया हो इस प्रकार आनन्दमना वहां आई और पूर्वागत दिक्कुमारियों की भांति भगवान् और उनकी माता को नमस्कार कर अपना परिचय दिया । तदुपरान्त कलश लिए गीत गाती हुई दक्षिण दिशा में खड़ी हो गई । ( श्लोक २९० - २९२) पश्चिम रुचक पर्वत स्थित इलादेवी, सुरादेवी, पृथ्वी, पद्मावती, एकनासा, अनवमिका, भद्रा और प्रशोका नामक ग्राठ दिक् कुमारियां इतनी द्रुतगति से वहां आई मानो भक्ति में वे एक दूसरे को परास्त करना चाहती हों। उन्होंने भी पूर्व की भांति जिनेश्वर और उनकी माता को नमस्कार कर अपना परिचय दिया और हाथों में पंखा लिए गीत गाती हुई पश्चिम दिशा में स्थित हो गई । (श्लोक २९३ २९५) उत्तर रुचक पर्वत से अलम्बुषा, पुण्डरीका, वारुणी, हासा, सर्वप्रभा, श्री और ह्री नामक आठ दिक्कुमारियां ग्राभियोगिक देवताओं के साथ रथ में ऐसी द्रुतगति से वहां आईं मानो वह रथ वायु द्वारा निर्मित हो । फिर वे भगवान् और उनकी माता को पहले आई हुई दिक्कुमारियों की भांति ही नमस्कार कर परिचय देकर हाथों में चँवर लिए उत्तर दिशा में स्थित हुई । ( श्लोक २९६ - २९८) विदिशा के रुचक पर्वत से चित्रा, चित्रकनका, सतेरा औौर सौत्रामनी ये चार दिक्कुमारियां वहां ग्राईं । वे पूर्वागतों की भांति ही जिनेश्वर माता को नमस्कार कर अपना परिचय दिया और हाथों में दीप लेकर ईशान आदि विदिशा में गीत गाती हुई खड़ी हो गई । (श्लोक २९९-३००)
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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