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________________ ७०] सागरचन्द्र ने प्रियदर्शना को इस प्रकार मुक्त कर दिया जं से आम्रलता को लकड़हारों से मुक्त किया जाता है। उस समय प्रियदर्शना सोचने लगी-परोपकार ही जिनका व्यसन है उनमें अग्रणी ये कौन हैं ? यह अच्छा ही हुआ कि मेरे भाग्य से आकृष्ट होकर ये सत्पुरुष यहाँ पाए। कामदेव-से रूपवान् ये ही मेरे पति बनें। ऐसा सोचती हुई वह घर लौट गई। सागरचन्द्र भी जिस प्रकार मूत्ति स्थापित की जाती है उसी प्रकार प्रियदर्शना की मूर्ति अपने हृदय-मन्दिर में स्थापित कर मित्र अशोकदत्त के साथ अपने घर की ओर चला। (श्लोक २४-२७) क्रमशः चन्दनदास ने यह बात सुनी । भला ऐसी बात छिप कर रह ही कैसे सकती थी? चन्दनदास ने मन ही मन सोचासागरचन्द्र को प्रियदर्शना से जो प्रेम हो गया है वह उचित ही है कारण, कमलिनी की मित्रता राजहंस से ही होती है; किन्तु उसने जो वीरत्व दिखाया वह अनुचित है क्योंकि पराक्रमी होने पर भी श्रेष्ठी को अपना वीरत्व प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। फिर सागरचन्द्र सरल स्वभाव का है। उसकी मित्रता कपटी अशोकदत्त के साथ हो गई है यह भी उचित नहीं हुआ। बदरी वृक्ष के साथ कदली वृक्ष जिस प्रकार अहितकर होता है यह भी वैसा ही है । इस प्रकार बहुत सोच-विचार के पश्चात् उसने सागरचन्द्र को बुलवाया और महावत जिस प्रकार हाथी को शिक्षा देता है उसी प्रकार मीठे शब्दों में उपदेश देने लगे 'पुत्र, समस्त शास्त्रों का अभ्यास कर तुम यह तो पूर्णत: जान हो गए हो कि व्यवहार कैसे किया जाता है ? फिर भी मैं तुम्हें कुछ कहूँगा। हम वणिक हैं। हम लोगों को कला-कौशल से व्यवसाय चलाना पड़ता है। इसीलिए हम लोगों को सौम्य-स्वभाव युक्त और मनोहर वेश में रहना पड़ता है । इस प्रकार रहने से हम निन्दा के भाजन नहीं बनते । अतः तरुणावस्था में भी तुम्हें गुप्त पराक्रमी होना होगा । वरिणकों को सामान्य अर्थ के लिए भी शंकाशील वृत्ति का कहा जाता है। स्त्रियों की देह का जिस प्रकार आच्छादित होना ही अच्छा है उसी प्रकार हमारी सम्पत्ति, विषय, क्रीड़ा और दान का गुप्त रहना ही उचित है। ऊंट के पैरों में बँधा कंकण जिस प्रकार शोभा नहीं देता उसी प्रकार हमारी जाति का अयोग्य (पराक्रम-)प्रदर्शन भी हमें शोभा नहीं देता।
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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