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________________ धर्म के एक दिग्गज प्राचार्य भी थे। महावीर की वाणी के प्रचारप्रसार में अहिंसा का सर्वत्र व्यापक सकारात्मक प्रयोग हो इस दृष्टि से वे चालुक्यवंशीय राजारों के सम्पर्क में भी सजगता से आए और सिद्धराज जयसिंह तथा परमार्हत् कुमारपाल जैसे राजर्षियों को प्रभावित किया और सर्वधर्मसमन्वय तथा विशाल राज्य में अहिंसा का अमारी पटह के रूप में उद्घोष भी करवाया। जैन परम्परा के होते हुए भी उन्होंने महादेव को भी जिन के रूप में मालेखित कर उनकी भी स्तवना की । हेमचन्द्र न केवल सार्वदेशीय विद्वान् ही थे, अपितु उन्होंने गुर्जर धरा में अहिंसा, करुणा, प्रेम के साथ गुर्जर भाषा को जो अनुपम अस्मिता प्रदान की यह उनकी उपलब्धियों की पराकाष्ठा थी। ___ महापुरुषों के जीवनचरित को पौराणिक आख्यान कह सकते है । पौराणिक होते हुए भी आचार्य ने इस चरित-काव्य को साहित्यशास्त्र के नियमानुसार महाकाव्य के रूप में सम्पादित करने का अभूतपूर्व प्रयोग किया है और इसमें वे पूर्णतया सफल भी हुए हैं। यह ग्रन्थ छत्तीस हजार श्लोक परिमारण का है। इस ग्रन्थ की रचना का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए हेमचन्द्र स्वयं ग्रन्थ की प्रशस्ति में लिखते हैं _ 'चेदि; दशार्ण, मालव, महाराष्ट्र, सिंध और अन्य अनेक दुर्गम देशों को अपने भुजबल से पराजित करने वाले परमार्हत् चालुक्यकुलोत्पन्न कुमारपाल राजर्षि ने एक समय प्राचार्य हेमचंद्र सूरि से विनयपूर्वक कहा-'हे स्वामिन् ! निष्कारण परोपकार की बुद्धि धारण करने वाले आपकी आज्ञा से मैंने नरक गति के प्रायुष्य के निमित्त-कारण मृगया, जूया, मदिरा आदि दुर्गुणों का मेरे राज्य में से पूर्णतः निषेध कर दिया है तथा पुत्ररहित मृत्यु प्राप्त परिवारों के धन को भी मैंने त्याग दिया है तथा इस पृथ्वी को अरिहंत के चैत्यों से सुशोभित एवं मंडित कर दिया है अतः वर्तमान काल में आपकी कृपा से मैं संप्रति राजा जैसा हो गया हूँ। मेरे पूर्वज महाराज सिद्धराज जयसिंह की भक्तियुक्त प्रार्थना से प्रापने पंचांगीपूर्ण 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' की रचना की। भगवन्! आपने मेरे लिए निर्मल 'योगशास्त्र' की रचना की और जनोपकार के लिए 'द्वयाश्रय काव्य, छंदोनुशासन, काव्यानुशासन और नाम-संग्रह (कोष) प्रमुख अनेक ग्रन्थों की रचना की। अतः हे प्राचार्य ! प्राप स्वयं (ई)
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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