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________________ [२३ से ही अर्हत् भगवान और निग्रंथ सुसाधुओं का सान्निध्य मिल पाता है । यदि मनुष्य-देह धारण करके भी हम इसका उत्तम फल ग्रहण नहीं करते हैं तब हमारी दशा उस नागरिक-सी हो जाती है जिनका शहर में रहते हुए भी सर्वस्व लुट जाता है। इसलिए अब मैं कवचधारी महाबल कुमार को राज्य-भार देकर आत्म-कल्याण में नियुक्त होता हूँ। (श्लोक २५०-२६५) ऐसा चिन्तन कर राजा शतबल ने महाबलकुमार को बुलवाया और उस विनय सम्पन्न कुमार को राज्य-भार ग्रहण करने को कहा । महाबल कुमार ने पितृ अाज्ञा शिरोधार्य कर ली, क्योंकि महान् आत्माए गुरुजनों की आज्ञा को अमान्य करने में भयभीत हो जाती हैं। ___(श्लोक २६६-२६७) तब राजा शतबल ने महाबलकुमार को सिंहासन पर बैठाकर राज्याभिषिक्त कर स्व हाथों से मंगल तिलक अंकित किया। कुन्दपुष्प-से मंगल तिलक में नवीन राजा उदयाचल पर आरूढ़ चन्द्रमा की भाँति सुशोभित होने लगे। शरत्कालीन मेघावत गिरिराज जिस प्रकार देखने में सुन्दर लगता है वे भी हंसधवल पिता के श्वेतछत्र में उतने ही सुन्दर दिखायी दे रहे थे। उड़ते हुए हंस युगलों से मेघपंक्ति जिस प्रकार सुशोभित होती है उसी प्रकार दोनों ओर चामर वीजने के कारण वे शोभित हो रहे थे। चन्द्रोदय के समय समुद्र जिस प्रकार मन्द्रित होता है उसी प्रकार अभिषेककालीन मन्त्र ध्वनि से आकाश भी मन्द्रित होने लगा। सामन्त और मन्त्रीगण ने महाबलकुमार को राजा शतवल का रूपान्तर मानकर अभिवादन किया और उनकी प्राज्ञापालन की शपथ ली। (श्लोक २६८-२७३) इस भाँति पूत्र को सिंहासन देकर राजा शतबल ने प्राचार्य के निकट जाकर स्वयं चारित्र रूप साम्राज्य को ग्रहण किया (अर्थात् प्रवजित हुए)। उन्होंने असार विषय का परित्याग कर सार रूप त्रिरत्न (सम्यक ज्ञान. सम्यक दर्शन, सम्यक चारित्र) को धारण किया अर्थात् राजवैभव परित्याग कर प्रवजित हुए। वे समभाव में अवस्थित रहने लगे। जितेन्द्रिय बनकर क्रोध, मान, माया, लोभ को उसी प्रकार उखाड़ फेंकने लगे जिस प्रकार नदी का प्रवाह तट स्थित वृक्ष को उत्पाटित कर देता है। वे शक्तिशाली महात्मा मन को
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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