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________________ ३१०] प्रभु के पास इस प्रकार निश्चल होकर बैठ गए मानो वे चित्रलिखित मात्र हैं । ( श्लोक ४८० - ४८२) इस दिन इस अवसर्पिणी के तृतीय आरे के निन्यानवे पक्ष अवशिष्ट थे, माघ कृष्णा त्रयोदशी का दिन था । दिवस के पूर्वाह्न का समय था । अभिजित् नक्षत्र में चन्द्र का योग था । उसी समय पर्यकासन में बैठे प्रभु ने बादर काय योग में अवस्थान कर बादर काय योग और बादर वचन योग निरुद्ध कर दिया । फिर सूक्ष्म काय योग का आश्रय लेकर बादर काय - योग, सूक्ष्म मनो-योग और सूक्ष्म वचन - योग को भी निरुद्ध कर दिया । अन्ततः सूक्ष्म काय योग को भी समाप्त कर सूक्ष्म क्रिया नामक शुक्ल ध्यान के तृतीय पाद के अन्तको प्राप्त किया । तदुपरान्त उच्छिन्न क्रिया नामक शुक्ल ध्यान के चतुर्थ पद का जिसका समय पाँच ह्रस्व अक्षरों के उच्चारण जितना है, आश्रय लिया । फिर केवल ज्ञानी, केवल दर्शनी, आठ कर्मों को क्षय कर सर्व दुःखरहित, सर्व अर्थसिद्धकारी, अनन्त वीर्य, अनन्त ऋद्धि सम्पन्न प्रभु बन्धन के अभाव में अरण्ड फल के बीज की तरह ऊर्ध्वगति सम्पन्न होकर स्वाभाविक सरल पथ से लोकाग्र अर्थात् मोक्ष को प्राप्त किया। दस हजार श्रमरणों ने भी अनशन व्रत लेकर क्षपक श्रेणी पर आरोहरण कर केवल ज्ञान पाया एवं मन, वचन और काया योग को सर्व भाव से रुद्ध कर वे भी स्वामी की तरह तत्काल परमपद अर्थात् मोक्ष को प्राप्त हुए । ( श्लोक ४८३-४९२) प्रभु के निर्वाण कल्याणक के समय सुख की लेशमात्र भी अनुभूति नहीं करने वाले नारकीय जीवों की दुःखाग्नि भी क्षणमात्र के लिए शान्त हुई । उस समय महाशोक आक्रान्त चत्री वज्राहत पर्वत की तरह मूच्छित होकर भूतल पर गिर पड़े। भगवान् के विरह का महादु:ख आ पड़ा; किन्तु उस समय दुःख को शिथिल करने का कारण रूप ऋन्दन कोई जानता नहीं था । अतः चक्रवर्ती को यह बताने के लिए एवं हृदय भार कम करने के लिए इन्द्र चक्री के पास बैठकर जोर-जोर से रोने लगे । इन्द्र के साथ समस्त देव भी क्रन्दन करने लगे । कारण, समान दु:खी प्राणियों की प्रचेष्टाएँ भी एकसी होती हैं । इन सबका रुदन सुनकर चेतना लौटने पर चक्री भी मानो ब्रह्माण्ड को खण्ड-खण्ड कर देंगे । इस प्रकार उच्च स्वर से ऋन्दन करने लगे । वृहद् प्रवाह के वेग से जैसे बाँध टूट जाता है
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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