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२७२] बाहुबली द्वारा पराजित मैं चक्रवतीं नहीं बनगा? जिसको मैं जीत नहीं सका और न ही संसार में अन्य कोई जीत सका ऐसा बाहुबली ही क्या चक्रवर्ती बनेगा ?
(श्लोक ७०२-७०६) ___ चक्रवर्ती जब ऐसा विचार कर रहे थे उसी समय यक्ष राजाओं ने चिन्तामणि रत्न-सा चक्र उनके हाथों में दे दिया। उससे भरत को विश्वास हुआ कि अभी तक वे चक्रवर्ती हैं । तब उन्होंने बवंडर जिस भांति आकाश में धूल को घणित करता है उसी प्रकार प्राकाश में चक्र घुमाने लगे। किरणजालों से विकट बना वह चक्र ऐसा लग रहा था मानो असमय में कालाग्नि उद्दीप्त हो गई है । जैसे वह द्वितीय बड़वानल या अकस्मात् उत्पन्न वज्राग्नि या उध्वोत्थित विद्युत् पूज अथवा पतनशील सूर्य बिम्ब या विद्युत् गोलक है। चक्रवर्ती द्वारा प्रहार के उद्देश्य से घूमते हुए उस चक्र को देखकर मनस्वी बाहुबली मन में विचारने लगे-स्वयं को ऋषभदेव का पुत्र कहने वाले इस राजा भरत को धिक्कार है और उसके क्षात्र धर्म को भी धिक्कार है। मैंने जब दण्ड प्रायुध लिया तो उन्होंने चक्र आयुध ग्रहण किया। उन्होंने देवों के सम्मुख उत्तम युद्ध की प्रतिज्ञा की थी; किन्तु ऐसा व्यवहार कर उन्होंने बालक की तरह प्रतिज्ञा भंग कर दी है। अतः उसे धिक्कार है। तपस्वी जैसे तेजोलेश्या का भय दिखाता है उसी प्रकार क्रुद्ध भरत चक्र दिखाकर जैसे समस्त विश्व को भय दिखाना चाहता है; किन्तु जिस प्रकार स्व भुजदण्डों की शक्ति उन्हें ज्ञात हो गई है उसी प्रकार चक्ररत्न की शक्ति भी परिज्ञात हो जाएगी। जिस समय शक्तिशाली बाहुबली ऐसा विचार कर रहे थे उसी समय भरत ने पूर्ण शक्ति से उन पर चक्र निक्षेप किया। चक्र को अपनी ओर आते देख तक्षशिलापति विचार करने लगे - तो क्या जीर्ण पात्र की तरह मैं इसे चूर्ण कर दूं ? क्रीड़ा कन्दुक की तरह इस पर प्रहार कर क्या इसे नीचे गिरा दू ? खेल ही खेल में पत्थर के टुकड़े की तरह क्या मैं इसे आकाश में उछाल दूं अथवा शिशुनाल की तरह इसे भूमि में गाड़ दू ? अथवा चंचल पक्षी-शावक की तरह इसे पकड़ ल? या बध्य अपराधी की तरह दूर से ही इसका परित्याग कर दूं? या चक्की में दिए शस्य की तरह इसके अधिष्ठायक देवताओं को दण्ड द्वारा पीस दूं? या फिर वह सब पीछे होगा पहले इसकी शक्ति से तो अवगत होऊँ । इसी प्रकार जब वे विचार कर रहे थे उसी समय शिष्य पाकर जैसे गुरु को प्रदक्षिणा