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________________ २६०] जाता है उसी प्रकार छह खण्ड के राजाओं को जीतकर भरत यदि अन्धे हो गए हैं तो वे भी सुख से नहीं रह सकेंगे। मैं तो उनके वैभव को छीना हरा ही देखता हूं। मैं तो जानबूझ कर उसकी उपेक्षा करता हूं। अभी मुझे देने की अमानत हो ऐसे उनके मन्त्री उनका भण्डार, हाथी, घोड़ा आदि और यश मुझे अर्पण करने के लिए ही भरत को यहाँ लाए हैं। इसलिए हे देवगण, यदि आप उनका हित चाहते हैं तो उन्हें युद्ध करने से रोकिए। यदि वे युद्ध नहीं करेंगे तो मैं भी नहीं करूंगा।' (श्लोक ४८६-५०९) मेघ गर्जन की तरह उनका ऐसा उत्कट अर्थात अभिमान पूर्ण वाक्य सुनकर देवगण विस्मित हो गए और पुनः उन्हें कहने लगे -'एक ओर चक्रवर्ती युद्ध का कारण चक्र का नगर में प्रवेश न होना बतलाते हैं। इससे उनके गुरु भी उन्हें रोक नहीं सकेंगे या निरुत्तर नहीं कर सकेंगे। दूसरी ओर पाप कहते हैं कि जो युद्ध करेगा उसके साथ मैं भी युद्ध करूँगा तब इससे इन्द्र भी आपको युद्ध करने से रोकने में असमर्थ हैं। आप दोनों ऋषभ स्वामी के दृढ़ संसर्ग से सुशोभित महाबुद्धिमान विवेकी जगत् रक्षक और दयावान् हैं फिर भी जगत् के लिए दुर्भाग्य रूप यह युद्ध उपस्थित हुया है। हे वीर, प्रार्थना पूर्ण करने में आप कल्पवृक्ष तुल्य हैं । अतः मापसे यही प्रार्थना है कि आप उत्तम युद्ध करिए, अधम युद्ध नहीं । कारण, आप दोनों ही तेजस्वी हैं। अधम युद्ध से अनेक लोगों के विनाश हो जाने से असमय में ही प्रलय हो जाती है। इसलिए आप लोगों के लिए उचित है कि आप दोनों दृष्टि-युद्धादि करिए। इससे आपका मान भी बढ़ेगा और लोक नाश भी नहीं होगा।' (श्लोक ५१०-५१७) बाहुबली ने देवताओं का कथन स्वीकार कर लिया । एतदर्थ उनका युद्ध देखने के लिए नगरवासियों की तरह देवता भी वहीं अवस्थित हो गए। (श्लोक ५१८) ___ तब एक बलवान छड़ीदार बाहुबली की आज्ञा से गजपृष्ठ पर आरोहण कर गज की भाँति गर्जन करते-करते बाहुबली के सैनिकों को बोलने लगा-'हे वीर सैनिकगण, तुम लोगों को वांछित पुत्र लाभ की तरह दीर्घ दिनों से जो स्वामी कार्य करना चाहते थे वह प्राप्त भी हना था किन्तु तुम लोगों की पुण्यहीनता के कारण देवताओं ने राजा बाहुबली से भरत के साथ द्वन्द्व-युद्ध की प्रार्थना की
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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