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________________ [२३१ के निकट पहुंचा। राक्षसों की तरह धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाए हस्तियों को लक्ष्य कर तीर निक्षेपकारी और चमरू जाति के मृगचर्म से कवच तैयार कर पहने हुए भील उस जंगल में निवास करते थे। मानो यमराज के सगोत्रीय हों ऐसे चमरू मृग, चीते, बाघ, सिंह और शरभ आदि क्रूर हिंसक पशु उस वन में अवस्थान करते थे। परस्पर आक्रमणकारी सर्प और नकुलों के विवर से वह वन भयंकर प्रतीत होता था। भाल्ल कों के केश धारण में व्यग्र छोटी-छोटी भीलनियां वहां विचरण कर रही थीं, भैंसे परस्पर युद्ध करते हुए उस अरण्य के प्राचीन वृक्षों को उखाड़ रहे थे। मधु संग्रह करने वालों द्वारा विताड़ित मधु-मक्खियों के कारण उस अरण्य में प्रवेश करना कठिन था। प्राकाश-स्पर्शी वृक्षों के समूह से वहां सूर्य भी दिखाई नहीं पड़ता था। पुण्यवान् जिस प्रकार विपत्ति का अतिक्रम कर जाता है उसी प्रकार वेगवान रथ में बैठे सुवेग ने उस घोर अरण्य को पार कर लिया। वहां से वह बहली देश पहुंचा। (श्लोक २६-४३) __ उस देश में राह के किनारे उगे वृक्षों के नीचे पथिक वधुएँ अलङ्कार धारण किए स्वच्छन्द रूप से बैठी थीं। देखकर लगाइस राज्य मैं सुराज्य है, सुशासन है। प्रत्येक गांव के गोकुलों में वृक्षों तले बैठे गोप बालक सानन्द ऋषभ-चरित्र गा रहे थे । मानो भद्रशाल वन से लाकर रोपण किए हों ऐसे बहुसंख्यक फलदायी सघन वृक्षों से समस्त ग्राम अलंकृत थे। वहां प्रत्येक घरों में दान की दीक्षा लिए गृहस्थ याचकों का अनुसन्धान करते रहते । भरत राजा द्वारा उत्पीड़ित उत्तर भरतार्द्ध से भागे हुए गरीब म्लेच्छगण यहां के अनेक ग्रामों में प्रा बसे थे। वह स्थान भरत क्षेत्र से अन्य-सा लग रहा था। वहां कोई भी राजा भरत की आज्ञा को जानता भी नहीं था, मानता भी नहीं था। इस प्रकार बहली देश से गुजरते समय सुवेग राह में मिलते लोगों के साथ जो कि बाहुबली के अतिरिक्त किसी अन्य राजा को नहीं जानते थे एवं जिन्हें कोई दुःख भी नहीं था, बातचीत करता हुया परिचय प्राप्त कर रहा था। पर्वत पर विचरण करने वाले दुर्मद और शिकारी पशु भी मानो पंगु हो गए हों ऐसे लग रहे थे। प्रजा के लिए अनुराग भरे वाक्यों एवं महान् समृद्धि के कारण वे बाहुबली की नीति को अद्वितीय सूखदायी समझने लगे थे। राजा भरत के लघु भ्राता बाहुबली के उत्कर्ष की बातें सुनते-सुनते आश्चर्यचकित सुवेग अपने स्वामी के सन्देश को
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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