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________________ [१८९ के अन्त में द्वितीय वरुण की भांति रथ पर बैठ कर समुद्र में प्रवेश किया | चक्र की नाभि पर्यन्त रथ को जल में ले जाकर रथ स्थापित कर धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायी फिर जयलक्ष्मी के क्रीड़ा करने की वीणा रूप धनुष की लकड़ी की तन्त्री के समान प्रत्यंचा को अपने हाथों से उच्च स्वर से शब्दायमान किया । समुद्र तट स्थित बेंत वृक्ष तुल्य तूणीर से तीर बाहर कर छिला पर इस प्रकार स्थापित किया मानो अतिथि को आसन पर बैठा रहे हों । सूर्य बिम्ब से खींचकर बाहर लायी किरणों की भांति वह तीर उन्होंने प्रभासपति की ओर निक्षेप किया । वायु की भांति तीव्र वेग से बारह योजन समुद्र प्रतिक्रम कर आकाश को उज्ज्वल करता हुआ वह तीर प्रभासपति की सभा में जाकर गिरा । तीर देखकर प्रभासपति क्षुब्ध हो उठे; किन्तु उस पर लिखित लिपि को पढ़कर विभिन्न रसों को प्रकट करने वाले नट की भांति शीघ्र ही शान्त हो गए । फिर वह तीर और उपहार लेकर प्रभासपति चक्रवर्ती के निकट श्राए एवं उन्हें नमस्कार कर बोले - 'हे देव, प्राप जैसे स्वामी से भासित होकर मैं ग्राज ही वास्तविक रूप में प्रभास बना हूं । कारण, सूर्य किरण से ही कमल कमल बनता है । हे प्रभु, मैं पश्चिम दिशा में सामन्त राजा की भांति आज से सर्वदा पृथ्वी शासनकारी प्रापकी प्राज्ञा में रहूंगा ।' ( श्लोक १९५ - २०८ ) 1 ऐसा कहकर प्रभासपति ने उस तीर को उसी प्रकार महाराज भरत को दिया जैसे युद्ध विद्या अभ्यासकारी का तीर भृत्य उठाकर लाता है और दे देता है । उसी के साथ मूर्तिमान् तेज- सा वलय, बाजूबन्ध, मुकुट, हार एवं अन्य वस्तुएँ और धन-सम्पत्ति उपहार में प्रदान किए। उसे प्राश्वस्त करने के लिए भरत ने वे सभी वस्तुएँ स्वीकार कर लीं । कारण, भृत्य का उपहार स्वीकार करना प्रभु की प्रसन्नता का सूचक होता है । फिर ग्रालवाल में जिस प्रकार वृक्ष रोपित किया जाता है उसी प्रकार प्रभासपति को वहां स्थापित कर शत्रुनाशक वे नृपति स्व-स्कन्धावार को लौट आए । कल्पवृक्ष -से गृही रत्न द्वारा प्रस्तुत ग्रहार से उन्होंने ग्रष्टम तप का पारना किया । फिर प्रभासपति के लिए ग्रष्टाह्निका उत्सव किया। क्योंकि प्रारम्भ में अपने सामन्त का भी प्रादर करना उचित होता है । ( श्लोक २०९-२१७) जिस प्रकार प्रदीप के पीछे प्रालोक जाता है उसी प्रकार चक्र
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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