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________________ १० ] रहे थे मानो अभी-अभी कैद से मुक्त होकर आए हैं (पाँवों में भारी-भारी बेड़ियाँ होने के कारण कैदी जैसे धीरे-धीरे चलते हैं ।) समस्त पथ जल में इस प्रकार विस्तारित हो गया था जैसे किसी दुष्ट दैत्य ने पथिकों के पथ को अवरुद्ध करने के लिए चारों ओर अपने हाथ फैला दिए हैं। गाड़ियाँ कादे में इस प्रकार धंसने लगी मानो रथ के चक्कों से उन्हें पीस डालने के लिए धरती ने रथ-चक्रों का ग्रास कर लिया है। ऊँटों के पैर ही नहीं उठ रहे हैं । ग्रारोहीगण इसीलिए नीचे उतर कर उनके पैरों में रस्सी बाँधकर खींचने लगे; किन्तु कादे के कारण उनके पैर उठते ही नहीं बल्कि वे गिर-गिर जाते थे। (श्लोक ९५-९९) वर्षा के कारण पथ चलना दुष्कर समझ कर धनश्रष्ठी ने उसी वनमें रहने का निश्चय किया। एक ऊँचा स्थान देखकर उन्होंने तम्बू डाला । उनकी देखा-देखी अन्य लोगों ने भी तम्बू ताने या कुटी निर्मित की। ठीक ही तो कहा जाता है जो देश और काल-सा अाचरण करता है वह सुखी होता है। (श्लोक १००-१०१) श्रेष्ठी के मित्र मणिभद्र ने भी जीवरहित भूमि पर उपाश्रय की भाँति एक कुटी बना दी। साधु सहित प्राचार्य वहाँ अवस्थान करने लगे। (श्लोक १०२) साथ में बहुत से लोग थे और अनेक दिन उन्हें रहना पड़ा। अतः उनके साथ जो पाथेय और चारा आदि था, सब खेत्म हो गया । क्षुधा से पीड़ित वे अन्य सामान्य तपस्वियों को भाँति कन्द-मुलादि के सन्धान में इधर-उधर विचरण करने लगे। __(श्लोक १०३-१०४) एक दिन सन्ध्या को श्रेष्ठी के मित्र मणिभद्र ने साथियों की दुर्दशा के विषय में श्रेष्ठी से निवेदन किया । यह सुनकर श्रेष्ठी उनके दुःख से इस प्रकार निश्चल होकर बैठ गए जैसे हवा नहीं रहने पर समुद्र निश्चल हो जाता है । इसी प्रकार चिन्ता करते-करते श्रेष्ठी की आँखें लग गई । ठीक ही तो कहा गया है अति दुःख और अति सुखे निद्रा के प्रमुख कारण होते हैं। (श्लोक १०५-१०७) रात्रि के शेष प्रहर में शुभचिन्तक अश्वशाला का एक प्रहरी यह कहता हुआ श्रेष्ठी का गुणगान कर रहा था
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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