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________________ १५८ ] सुशोभित हो रहा था मानो वह पूर्ण सूर्यबिम्ब है । देवताओं के लिए भी जिसका निर्माण करना कठिन था ऐसे धर्मचक्र को बाहुबली ने प्रभु के अतिशय से निर्मित होते देखा । समस्त स्थानों से लाए गए पुष्पों से बाहुबली ने उस धर्मचक्र की पूजा की । इससे मन में हुआ जैसे वहां फूलों का पर्वत है । नन्दीश्वर द्वीप में इन्द्र जिस प्रकार अष्टाह्निका महोत्सव करते हैं इस प्रकार महोत्सव किया। फिर धर्मचक्र की पूजा और धर्मचक्र की रक्षा के लिए राजपुरुषों को सदा वहां रहने का आदेश देकर पुनः धर्मचक्र की वन्दना की और नगर की ओर लौट गए । ( श्लोक ३७९ - ३८५) इस प्रकार स्वतन्त्रतापूर्वक प्रस्खलित गति से प्रव्रजनकारी नाना प्रकार की तपस्या में निष्ठावान विभिन्न प्रकार के ग्रभिग्रहशील मौन व्रतावलम्बी यवनादि म्लेच्छ देश के निवासी नाय को दर्शन मात्र से भद्र बनाने में समर्थ उपसर्ग और परिषह सहन करने में ग्रव्याकुल प्रभु ने एक हजार वर्ष एक दिन की भांति व्यतीत किया । ( श्लोक ३८६-३८८ ) क्रमशः प्रव्रजन करते-करते प्रभु महानगरी अयोध्या के पुरिमताल नामक शाखानगर में आए। उसके उत्तर को प्रोर स्थित द्वितीय नन्दनवन के समान शकटमुख नामक उद्यान में प्रभु ने प्रवेश किया । अष्टम तप कर प्रतिमाधारी प्रभु ने अप्रमत्त नामक सप्तम गुणस्थान में प्रारोहण किया। फिर अपूर्वकरण नामक गुणस्थान में श्रारूढ़ होकर सविचार पृथक्त्व वितर्क नामक शुक्ल ध्यान की प्रथम श्रेणी प्राप्त की । तत्पश्चात् अनिवृत्ति नामक नवम और सूक्ष्म संपराय नामक दशम गुरणस्थान से होते हुए क्षरणमात्र में क्षीणकषाय अवस्था को प्राप्त किया। फिर ध्यान द्वारा पल भर में चूर्णीकृत लोभ नष्ट कर रीठे के जल की तरह उपशान्त कषायी बने । इसके बाद ऐक्यश्रुत विचार नामक शुक्ल ध्यान की द्वितीय श्रेणी पाकर 1 अन्तिम क्षण में क्षीणमोह नामक द्वादश गुणस्थान पर चढ़ गए । इससे प्रभु के समस्त घाती कर्म क्षय हो गए। इस प्रकार व्रत ग्रहण करने के एक हजार वर्ष पश्चात् फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन चन्द्र जब उत्तराषाढ़ा नक्षत्र पर आया तब सुबह के समय प्रभु को त्रिकाल विषयक केवल ज्ञान प्राप्त हुआ । इस ज्ञान से संसार के समस्त विषय करामलकवत् जाने जाते हैं । उस समय
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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