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________________ १५० ] लंकार को प्रापकी देह पर धारण कर उन्हें अलंकृत करें ।' पाँचवें ने कहा - 'हे स्वामिन् ग्राप मेरे घर पधारें। आपके शरीर के अनुकूल पट्ट वस्त्र धारण कर उन्हें पवित्र करें ।' कोई बोला - 'हे देव, मेरी कन्या देवांगना-सी सुन्दर है आप उसे ग्रहण करें । आापके आगमन से हम धन्य हो गए है ।' अन्य किसी ने कहा - 'हे राजकुंजर, आप क्यों पैदल चल रहे हैं ? मेरे उस पर्वत तुल्य हाथी पर आरोहण कीजिए ।' कोई और बोला- ' सूर्याश्व के समान मेरे अश्व को स्वीकार करिए | हमारा प्रातिथ्य स्वीकार न कर ग्राप क्यों हमें अयोग्य प्रतिपादित कर रहे हैं ?" किसी ने कहा - 'इस रथ में उत्तम जाति के प्रश्व जुते हैं आप इसे स्वीकार कीजिए। आप इस रथ पर नहीं चढ़ेंगे तो यह किस काम आएगा ?' कोई कहता - 'हे प्रभु, इन पके फलों को ग्रहरण करिए।' किसी ने कहा - 'हे एकान्तवत्सल, आप इन ताम्बूल पत्रों को प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण करिए ।' कुछ बोले प्रभु - 'हमने कौन-सा अपराध किया है। जिसके कारण आप न कुछ सुनते हैं न बोलते हैं ?" ( श्लोक २५१-२६३) इस प्रकार लोग उनसे प्रार्थना करने लगे - किन्तु किसी की भी प्रदत्त वस्तु ग्रहण योग्य न समझकर प्रभु उसी प्रकार घर-घर विचरण करने लगे जैसे चन्द्र एक नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र पर भ्रमण करता । प्रभात के समय जिस प्रकार पक्षियों का कोलाहल सुना जाता है उसी प्रकार श्रेयांसकुमार ने घर बैठे ही नगरवासियों का कोलाहल सुना । यह कोलाहल क्यों हो रहा है यह जानने के लिए उन्होंने अपने ग्रनुचर को भेजा । अनुचर गया और समस्त वृतान्त विदित कर करबद्ध होकर बोला 'राजाओं की भाँति जिनकी पाद-पीठिका के सम्मुख अपने मुकुट से धरती स्पर्श करते हुए इन्द्रादि देवता दृढ़ भक्ति से भूलुण्ठित होते हैं, सूर्य जिस प्रकार समस्त वस्तु को प्रकाशित करता है उसी प्रकार जिन्होंने इस लोक पर दया कर आजीविका के साधन रूप कर्मों का निर्देश किया है, दीक्षा लेने की इच्छा से जिन्होंने भरतादि और आपको भुक्तावशिष्ट अन्न की तरह यह भूमि दान की है जिन्होंने समस्त सावदय वस्तुओंों का त्याग कर प्रष्ट कर्म रूप महापंक को शुष्क करने के लिए ग्रीष्मकालीन रौद्र की भाँति तप स्वीकार किया है, क्षुधार्त तृषार्त वे ही प्रभु ऋषभदेव ममत्वहीन बने
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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