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________________ १४८ ] से भूमितुण्डक, मूलवीर्य विद्या से मूलवीर्यक, शंकुका विद्या से शंकुक, पाण्डुकी विद्या से पाण्डुक, काली विद्या से कालिकेय, खपाकी विद्या से खपाकक, मातंगी विद्या से मातंग, पार्वती विद्या से पार्वत, वंश शालया विद्या वाले वंशीलय, पांशुमूला विद्या वाले पांशुमूलक और वृक्ष मूला विद्या वाले वृक्ष - मूलक कहलाए । इन्हें भी दो भागों में विभाजित किया गया । प्राठ जाति के विद्याधर नमि के और शेष आठ जाति वाले विनमि के राज्य में निवास करने लगे । अपनी-अपनी जाति में अपने-अपने शरीर को भाँति उन्होंने एक-एक विद्याधीश्वर देवता की स्थापना की । सर्वदा भगवान् ऋषभ की पूजा कर धर्म की जिससे हानि न हो इस प्रकार देवताओं की ही तरह भोग उपभोग करने लगे मानो नमि श्रौर विनमि दूसरे शक्र और ईशानेन्द्र ही हों । इस प्रकार कभी जम्बुद्वीप के पर्वत शिखर पर कान्ताओं के साथ कोड़ा करते, कभी सुमेरु पर्वत के नन्दन आदि वन में पवन की भाँति इच्छापूर्वक प्रानन्द विहार करते, कभी यह सोचकर कि श्रावके होने के कारण ही वे इस सम्पत्ति के अधिकारी हुए हैं नन्दीश्वर आदि तीर्थों में शाश्वत जिन प्रतिमानों की पूजा करने जाते । कभी विदेहादि क्षेत्रों में जाकर अर्हं त् भगवान् के समोसरण में प्रभु की अमृत वाणी का पान करते । कभी हरिण जिस प्रकार कान ऊँचा कर गाना सुनता है उसी प्रकार चारण मुनियों की धर्म देशना सुनते । सम्यक्त्व और अक्षय भण्डार के अधिकारी वे विद्याधरों द्वारा परिवृत होकर अर्थ धर्म काम की क्षति न हो इस प्रकार राज्य करने लगे । 1 ( श्लोक २२५-२३३) कच्छ और महाकच्छ आदि राजा जो कि तपस्वी हुए थे गंगा नदी के दक्षिण तट पर मृग की भाँति वनचर बने विचरण करने लगे । वल्कलवस्त्र धारण किए हुए वे चलायमान वृक्ष से लगते थे । वे गृहस्थ घरों के अन्न को वमन किया हुआ ग्रन्न समझ कर कभी ग्रहण नहीं करते । चोला और बेला आदि तपस्या करते रहने के कारण उनकी देह का मांस सूख गया था अतः उनके शुष्क शरीर वायु रहित धौंकनी की तरह लगते । पारने के दिन भो वे वृक्ष पतित पर्ण और फल मात्र खाते एवं मन ही मन कर वहीं निवास करते । से भगवान् का ध्यान ( श्लोक २३४ - २३७)
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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