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के कारण जिनके शरीर ने अरुण वर्ण धारण किया है वे पद्मप्रभ तुम्हारा कल्याण करें । ( श्लोक ८ )
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चतुविध संघरूप आकाश में जो सूर्य की भांति देदीप्यमान है, जिनके चरण इन्द्र द्वारा पूजित हैं, उन सुपार्श्वनाथ को मैं नमस्कार करता हूँ ।
( श्लोक ९ )
१० चन्द्रकौमुदी की भाँति उज्ज्वल चन्द्रप्रभ भगवान की जो मूर्ति है, उसे देखने से लगता है जैसे शुक्ल ध्यान ही मूर्तिमंत हो उठा है, वह मूर्ति तुम्हारे ज्ञान-लाभ का कारण बने ।
( श्लोक १० ) ११ जो केवलज्ञान के प्रभाव से जगत् को करामलकवत् जानते हैं और जो अचिन्तनीय प्रभाव के आधार हैं वे सुविधिनाथ तुम्हें बोध प्रदान करें । ( श्लोक ११ )
१२ प्राणी मात्र में प्रानन्द-अंकुर विकसित करने में जो नवीन जलद तुल्य हैं, जो स्यादवाद रूपी अमृत का वर्षण करते हैं वे शीतलनाथ तुम्हारी रक्षा करें । ( श्लोक १२ )
१३ जिनका दर्शन संसार रूपी रोगों से पीड़ित लोगों के लिए वैद्य की भांति है, जो निःश्रेयस रूप से मोक्ष रूपी लक्ष्मी के पति हैं वे श्रेयांसनाथ तुम्हारे कल्याण का कारण बनें ।
( श्लोक १३ ) १४ जो समस्त विश्व के कल्याणकारी हैं, जिन्होंने तीर्थंकर रूप नाम कर्म प्राप्त किया है और जो सुरासुर नर पूजित हैं वे वासुपूज्य तुम्हारी रक्षा करें | ( श्लोक १४ ) १५ निर्माल्य चूर्ण की भांति जगत् जन के चित्त रूपी वारि को जो निर्मल करते हैं उन्हीं विमलनाथ की वाणी जययुक्त हो ।
( श्लोक १५ )
१६ जिनका करुरणा रूप वारि स्वयंभूरमण नामक समुद्र जल का प्रतिस्पर्धी है वे अनन्तनाथ असीम मोक्ष रूपी लक्ष्मी तुम्हें प्रदान करें । ( श्लोक १६ ) १७ शरीरधारी जोवों के लिए कल्पवृक्ष की भांति जो अभीप्सित